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________________ 76 षट् उपांग बार, वली मूलसूत्र चार, नंदी अनुयोगद्वार; दशपयन्ना उदार, छेद वृत्ति सार, प्रवचन विस्तार, भाष्य नियुक्ति सार ३ जय जय जय नंदा, जैन दृष्टि सूरिंदा, करे परमानंदा, टालता दुःखदंदा ज्ञानविमलसूरींदा, साम्यमाकंद कंदा, वर विमल गिरिंदा, ध्यानथी नित्य भदा ४ (28) श्री शत्रुंजय स्तुति यासी लाख पूरव घरवासे, वसीया परिकर युक्ताजी, जन्म थकी पण देवतरू फल, क्षीरोदधिजल भोक्ताजी; मइ सुअ ओहिं नाणे संयुत, नयण वयण कज चंदाजी, चार सहसशुं दीक्षा शिक्षा, स्वामी श्री ऋषभ जिणंदाजी. १ मनः पर्यव तव नाण उपन्युं, संयत लिंग सहावाजी, अढी द्विपमां सन्नीपंचेन्द्रिय, जाणे मनोगत भावाजी, द्रव्य अनंता सुक्ष्म तिर्च्छा, अढारसे खित्त ठायाजी, पलिय असंखम भाग त्रिकालिक, द्रव्य असंख्य परजायाजी. २ ऋषभ जिणेसर केवल पामी, रयण सिंहासन ठायाजी, अनभिलप्य अभिलाप्य अनंता, भाग अनंत उच्चरायाजी; तास अनंतमे भागे धारी, भाग अनंते सूत्रजी, गणधर रचिया आगम पूजी, करीओ जनम पवित्रजी. ३ गोमुख जक्ष चक्केसरी देवी, समकित शुद्ध सोहावेजी, आदि देवनी सेवा करंती, शासन शोभ चढावेजी; श्रद्धा संयुत जे व्रतधारी, विघन तास निवारेजी, श्री शुभविरविजय प्रभु भगते, समरे नित्य सवारेजी. ४ (29) श्री शत्रुंजय स्तुति विद्याधरोने इन्द्रदेवो, जेहने नित पूजता, दादा सीमंधर देशनामां, जेहना गुण गावता, जीवो अनंता जेहना, सान्निध्यथी मोक्षे जता, ते विमल गिरिवर वंदता, मुज पाप सहु दूरे थतां १ षटखंडना विजयी बनीने चक्रीपदने पामता, षोडश कषायो परिहरीने सोलमा जिन राजता, चौमास, रही गिरिराज पर जे भव्यने उपदेशता, ते शांति जिनने वंदता मुज पाप सहु दुरे थतां . २. जे आदि जिननी आण पामी सिद्धगीरी ए आवता, अणसण करी एक मासनुं मुनि पंचक्रोडशुं सिद्धता, जे नामथी पुंडरिकगिरि एम तिहुं जगत बिरदावता, पुंडरिक स्वामी वंदता मुज पाप सहु दुरे थतां. ३.
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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