SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 72 - (19) श्री शजय स्तुति विमलाचलमंडण जिनवर आदिजिणंद, निर्भय निरमोही, केवलज्ञान दिणंद; जे पूरव नवाणुं, आव्या धरी आणंद, शत्रुजय शिखरे, समवसर्या सुखकंद. १ वली इण चोविसीमां, ऋषभादिक जिनराय, वली काल अतीते, अनंत चोवीशी थाय, ते सवि इण गिरिवर, आवी फरसी जाय, इम भावि काले, आवशे सवि मुनिराय. २ श्री ऋषभना गणधर, पुंडरीक गुणवंत, द्वादश अंगरचना, कीधी जेने महंत; सविआगममांहे, शत्रुजय महिमा महंत, भावि जिन गणधर, सेवो करी थीर चित्त. ३ चक्केसरी गोमुख, कपर्दि प्रमुख सुर सार, जस सेवा कारण, थापी इंद्र उदार; देवचंद्र गणि भावे, भविजनने आधार, सवीतीरथ मांहे, सिद्धाचल शीरदार. ४ (20) श्री शQजय स्तुति ऋषभ जिन सुहाया, श्री मरुदेवीमाया, कनक वरण काया, मंगला जास जाया, वृषभलंछन पाया, देव नर नारी गाया, पणसय धनु काया, ते प्रभु ध्यान ध्याया; १ अ तिरथ जाणी, जिन त्रेवीश उदार, ओक नेम विना सवि, समवसर्या निरधार, गिरि कंडणे आवी, पहोंता गढगिरनार, चैत्री पूनमदिने, तेवंदु जयकार, २ ज्ञाताधर्मकथा, अंतगडसूत्र मझार, सिद्धाचल सिध्या, बोल्या बहु अणगार, ते माटे ओ गिरि, सवि तीरथ शिरदार, जिन भेटे थावे, सुख संपति विस्तार, ३ गोमुख चक्केसरी, शासननी रखवाल, ओ तीरथ केरी, सान्निध्य करे संभाल, गिरुओ जसमहिमा, संप्रति काले जास, श्री ज्ञानविमलसूरी, नामे लील विलास, ४ ___ (21) श्री शजय स्तुति श्री प्रथम जिनेशर, रिसहेसर परमेश, सेवकने पाले, टाले कर्मकलेश, इन्द्रादिक देवा, सेवा सारे जास, मरुदेवा नंदन, वंदन कीजे तास, १ अष्टादश दोषा, अष्ट करम अरिहंता, प्रतिबंध निवारी, वसुधातले विचरंता, जे गतचोविशी, अनागत वर्तमान, तसु पाये लागुं, मांगु समकित दान, २ पुंडरीक गिरि केरो, प्रवचनमा अधिकार, दिठे दुःखवारे, उतारे भवपार,
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy