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________________ 53 भवे हे जगज्जीव बंधो. ४ सुधा स्यंदी ते दर्शन नित्य देखे, गणुं तेहनो हे विभो जन्म लेखे; त्वदाज्ञा विषे जे रह्या विश्वमांहे, करे कर्मनी हाण क्षण ओक मांहे. ५ जिनेशाय नित्यं प्रभाते नमस्ते, भवि ध्यान होजो ह्यदये समस्ते; स्तवी देवना-देवने हर्ष पुरे, मुखां भोज भाली भजे हेज उरे. ६ कहे देशना स्वामी वैराग्य केरी, सुणे पर्षदा बार बेठी भलेरी;सुधां बोध धारा समी ताप टाळे, बेहुं बांधवा सांभळे ओक ढाळे ७ लहे मोक्षनां सुख लीला अनंती, वर क्षायिक ज्ञान भावे लहंती; चिदानंद चित्ते धरे ध्येय जाणी, कहे राम नित्य जपो वाणी. ( 137 ) श्री मल्ली जिन चैत्यवंदन पुरुषोत्तम परमातमा, परम ज्योति परधान; परमानंद स्वरुप रुप, जगमां नही उपमान. १ मरकत रत्न समान वान, तनु कांति बिराजे; मुख शोभा श्रीकार देखी, विधु मंडळ लाजे. २ इंदिवर दल नयन सयल, जन आणंद कारी, कुंभराय कुल भाण भाल, दिधिती मनोहारी. ३ सुरवर नरवधु मली मली, जिन गुण गण गाती; भक्ति करे गुणवंतनी, मिथ्या अघघाती. ४ मल्ली जिणंद पद पद्मनी अ, नित्य सेवा करेजेह; रुप विजय पद संपदा, निश्चय पामे तेह. ५ (138) श्री ओकसो सित्तेर जिन चैत्यवंदन सोल जिनवर शामला, राता त्रीस वखाणुं; लीला मरकत मणी समा, अडत्रीश गुणखाणं. १ पीळा कंचन वर्ण समा, छत्रीस जिनचंद, शंख वरण सोहामणो, पचाशे सुखकंद २ सीत्तेर सो जिन वंदिओ ओ, उत्कृष्ट समकाळ; अजित नाथ वारे हुआ, वंदु थई उजमाळ. ३ नाम जंपंता जिनतणुं, दुरगति दूरे जाय; ध्यान ध्यातां परमात्मनुं, परम महोदय थाय. ४. जिनवर नामे जश भलो अ, सफल मनोरथ सार; शुद्ध प्रतीति जिन तणी, शिव सुख अनुभव पार. ५ (139) श्री पंचतीर्थनुं चैत्यवंदन आज देव अरिहंत नमुं, समरुं तोरुं नाम; ज्यां ज्यां प्रतिमा जिन तणी, त्यां त्यां करुं प्रणाम. १ शत्रुंजय श्री आदिदेव, नेम नमुं गिरनार; तारंगे श्री
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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