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________________ १६ रोगिमृत्युविज्ञाने तो वह छ दिन जियेगा, ये पूर्वोक्त रेखायें प्रायः रोगी के ही देखी गयीं हैं स्वस्थ नीरोगी के कभी कहीं पर होती हैं ॥ ४ ॥ अभ्यङ्गरहिताः केशाः दृश्यन्तेऽभ्यङ्गसनिभाः। यस्यातुरस्य स ज्ञेयो भिषग्भिः स्वल्पजीवनः ॥५॥ जिस रोगी के तैलादि अभ्यङ्ग रहित रूक्ष केश, अभ्यङ्ग सहित तल से युक्त से मालूम दें वह रुग्ण थोड़े ही समय मेंवश्य मर जाय, यह जानो ॥५॥ यस्य चोत्पाटिताः केशा न बुध्यन्ते कथंचन । स रुग्णो बाऽप्यरुग्णो वा षडरात्रानाधिकं वसेत् ॥ ६॥ जिसके उत्पाटित-खींचकर उखाड़े हुए बाल कथमपि मालूम न दें बह रुग्ण बीमार हो अथवा अरुग्ण (स्वस्थ) हो छ रात्रि से अधिक नहीं जियेगा ॥६॥ सरुजो नासिकावंशः पृथुत्वं यस्य गच्छति । उच्छूनवदनुच्छूनः स वयो भिषजां वरैः ॥७॥ जिस रोगी का नासिकावंश पृथु पूर्वापेक्षया लम्बा मालूम दे और सूजा तो नहीं हो परन्तु सूजा सा मालूम दे, उसे उत्तम वैद्य असाध्य समझकर छोड़ दे, वह अवश्य स्वल्प दिनों में मर जायगा ॥ ७ ॥ .. यस्य नासाऽतिवक्रा स्याद् अत्यन्तं संवृताऽपि च । - यद्वाऽतिविवृता शुष्का तं विद्याद् विगतायुषम् ॥ ८॥ जिस रोगी की नासिका अत्यन्त वक्र टेढ़ी हो जाय और नासिकाछिद्र-नथुना सर्वथा संवृत हो जाय अर्थात् बन्द हो जाय, अथवा विपरीत हो जाथ अर्थात् नासिका तो अत्यन्त टेढी हो परन्तु नासिकाछिद्र शुष्क और सर्वथा फैले खुले हुये हौ, उसे विगतायुष–अर्थात् उसका जीवन समाप्त हो गया है-ऐसा समझे ॥८॥
SR No.032178
Book TitleRogimrutyuvigyanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMathuraprasad Dikshit
PublisherMathuraprasad Dikshit
Publication Year1966
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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