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________________ २] मृत्यु और परलोक यात्रा (द) सूक्ष्म शरीर ___ भाव शरीर स्थूल शरीर का ही एक भाग है जो मृत्यु के बाद उसी के साथ थोड़े समय बाद नष्ट हो जाता है। इससे परे सूक्ष्म शरीर है जो जीवात्मा का स्व-शरीर है। मनुष्य में यह शरीर चौदह से इक्कीस वर्ष की उम्र तक विकसित हो जाना चाहिए। इसके पूर्ण विकसित न होने पर मनुष्य में कमी रह जाती है। इसके विकास से बुद्धि, तर्क व विचार विकसित होते हैं। इसी शरीर के विकास से संस्कृति का विकास होता है । इसमें -सन्देह, विचार, श्रद्धा, विवेक की संभावनाएँ हैं। सन्देह और विचार जन्मजात है, श्रद्धा और विवेक इनका रूपान्तरण है। सन्देह से श्रद्धा एवं विचार से ही विवेक उत्पन्न होता है । विचार नहीं करने वाला अन्धविश्वासी हो जाता है। वह हठधर्मी व दुराग्रही हो जाता है। विवेक वाले का निर्णय 'निश्चित व स्पष्ट होता है। जो सूक्ष्म शरीर को विकसित कर लेते हैं उनके चेहरे के चारों ओर आभा मण्डल (ओरा) दिखाई देता है जो आत्मा का ही प्रकाश है। यह आभा मण्डल सूक्ष्म कणों का बना होता है जो आँखों से दिखाई नहीं देता । इसी “सूक्ष्म शरीर से स्थूल शरीर का निर्माण होता है। . अधिकांश मनुष्य इसी शरीर पर रुक जाते हैं । उनको यह ‘जीवन ही सब कुछ मालूम होता है। आगे के जीवन की उनकी कल्पना ही नहीं होती। इस शरीर का सम्बन्ध कुण्डलिनी के "मणीपुर चक्र" से है । इस शरीर के विकास के बाद ही चौथा -मनस शरीर विकसित होता है। 000
SR No.032177
Book TitleMrutyu Aur Parlok Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Dashora
PublisherRandhir Book Sales
Publication Year1992
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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