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________________ ७६ ] मृत्यु और परलोक यात्रा कहीं भी पहुंच सकती है। इनका मन अधिक सक्रिय हो जाता है किन्तु कर कुछ नहीं सकती। __ ऐसी कई जीवात्माएँ हमारे चारों ओर भी विद्यमान हैं तथा कई बहुत दूर चली जाती हैं। जिन जीवात्माओं की खाने "पीने, बदला लेने की भावनाएँ एवं काम वासनाएँ बहुत तीव्र होती हैं वे किसी दूसरे के शरीर में प्रवेश कर अपनी वासनाओं की पूर्ति भी करती है। ये उपयुक्त अवसर पाकर चोरी भी करती है। अन्तराल में ये जीवात्माएँ अच्छे बुरे कर्म नहीं कर सकती "जिससे इनका विकास या पतन नहीं होता । अपने विकास के "लिए उसे पुनः मनुष्य शरीर धारण करना पड़ता है। दैव “योनि भी भोग योनि ही है। वहाँ से वह मोक्ष में नहीं जा सकती । मुक्ति लाभ के लिए मनुष्य जीवन ही सुअवसर है। __ इन जीवात्माओं का केवल सूक्ष्म शरीर ही होता है जो मोक्ष पर्यन्त बना रहता है। यह सूक्ष्म शरीर मन से अधिक प्रभावित होता है । यह सूक्ष्म शरीर तीन स्थानों पर एक साथ “दिखाई दे सकता है। (ब) जीवात्माओं से सम्पर्क अन्तराल में भटकती हुई इन जीवात्माओं से सम्पर्क भी स्थापित किया जा सकता है । ये जीवात्माएँ भी स्थूल लोक के व्यक्तियों से सम्पर्क करने की सदा इच्छुक रहती है। आज “दुनिया में कई ऐसे संगठन हैं जो इन जीवात्माओं से निरन्तर
SR No.032177
Book TitleMrutyu Aur Parlok Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Dashora
PublisherRandhir Book Sales
Publication Year1992
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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