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________________ ५४ ] . . मृत्यु और परलोक यात्रा शरीर धारण कर वह उन्नति करता हुआ अन्त में मोक्ष को प्राप्त होता है । यही उसकी वास्तविक मृत्यु है जिसके बाद ही उसका जन्म-मृत्यु से छुटकारा होता है। इसलिए शरीर की मृत्यु जीवात्मा के लिए अभिशाप नहीं बल्कि वरदान है। यदि जीवन और मृत्यु का चक्र नहीं होता तो जीवात्मा का कभी विकास नहीं हो सकता था। मनुष्य आदिम सभ्यता से ऊपर उठ ही नहीं पाता । जिसे जीवन की इस तारतम्यता का ज्ञान नहीं है वही इस शरीर की मृत्यु को अपनी मृत्यु समझकर भयभीत होता है। मृत्यु में शरीर के अलावा कुछ भी नष्ट नहीं होता वह जीवात्मा पुनः नया शरीर धारण करके नये जीवन में प्रवेश करता है । नया वस्त्र पहनना, नये घर में रहना, नये स्थानों पर जाना, नया वातावरण देखना, नये लोगों से मिलना, नया अनुभव करना किसे अच्छा नहीं लगता। किन्तु जिसे इसका ज्ञान नहीं है वे ही रोते हैं और दुःखी होते हैं जबकि ज्ञानी इसका सहर्ष स्वागत करते हैं । जिस प्रकार अन्धकार में प्रवेश करने से भय लगता है उसी प्रकार ज्ञान के अभाव में ही मनुष्य मृत्यु से डरता है । अन्यथा भयभीत होने का कोई कारण ही नहीं है। ____जो विद्यार्थी पूरी तैयारी करके परीक्षा में बैठता है वह प्रश्न-पत्र को देखकर कभी भी नहीं घबराता, ऐसे ही मृत्यु की पूर्व तैयारी करने वाला उससे नहीं घबराता । जो अपने जीवन काल में समस्त कर्तव्यों को पूर्ण कर चुका है, जिसने जीवन का पूरा सदुपयोग किया है, जिसका जीवन सदा पवित्र रहा है, जिसने सदा दूसरों का हित चिन्तन ही किया है, जो राग, द्वेष, घृणा, वैमनस्य, ईर्ष्या आदि की अग्नि में कभी नहीं जला है
SR No.032177
Book TitleMrutyu Aur Parlok Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Dashora
PublisherRandhir Book Sales
Publication Year1992
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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