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________________ १३० ] मृत्यु और परलोक यात्रा. (स) अवतार पुनर्जन्म और अवतार में भेद है। पुनर्जन्म कर्मफलों के भोग के लिए तथा जीवात्मा अपने विकास के लिए ग्रहण करती है। इन जीवात्माओं को बाध्य होकर जन्म धारण करना पड़ता है किन्तु अवतार वाली आत्माएँ पूर्ण विकसित होती हैं । उन्हें न विकास की आवश्यकता होती है न इनके कर्मफल ही शेष होते हैं। .. ईश्वरीय योजनानुसार ये संसार में उच्च ज्ञान देने के लिए आती हैं अथवा विशेष प्रकार के कार्यों को सम्पन्न करने आती है तथा कार्य समाप्ति पर पुनः लौट जाती है । ये भी ईश्वर द्वारा ही नियुक्त होते हैं किन्तु इनकी प्रतिभा का पूर्ण विकास हो चुका होता है। इनमें ईश्वरीय चेतना होती है। संसार में आकर इन्हें साधना की आवश्यकता नहीं होती। उपदेश मात्र देने से कोई अवतार नहीं हो जाता। यह कार्य सन्तों का है। अवतार पूरे जन-जीवन को आन्दोलित कर देते हैं। जब भी कोई अवतार होता है तो वह अकेला नहीं होता, अपने पूरे समूह को लेकर आता है । यह समूह पूर्व जन्मों का होता है। अक्सर सभी जीवात्माएँ अपने कर्मों के अनुसार समूह में ही रहती हैं व समूह में ही मरती हैं । अगले जन्म में फिर अपने पूरे समूह के साथ जन्म लेती है। इन साधारण जीवात्माओं का उस अवतार के साथ एक तादात्म्य होता है जैसे कृष्ण के साथ गोप, ग्वाल, गोपियाँ आदि पूर्व में भी उनके साथ थे ऐसी कथाएँ हैं।
SR No.032177
Book TitleMrutyu Aur Parlok Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Dashora
PublisherRandhir Book Sales
Publication Year1992
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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