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________________ १२४ ] मृत्यु और परलोक यात्रा वातावरण में जन्म ले लेती है जिससे वह अपने कर्मफलों का भोग कर सके तथा अपनी इच्छा, वासना आदि को पूरा करती हुई अपना विकास भी कर सके । आज हमारा सम्बन्ध जिस क्षेत्र या परिवार से है वह इसी जन्म का नहीं है, बल्कि कई जन्मों का है । वर्तमान के नाते रिश्ते समाज की व्यवस्था मात्र है ये महत्वपूर्ण नहीं है, महत्व - पूर्ण है इनसे प्रेम, दया, सौहार्द, विचारों की अनुकूलता अथवा प्रतिकूलता, ईर्ष्या, घृणा, बदला लेने की भावना, ऋण वसूल करना आदि जो पूर्व जन्म के अनुसार ही होता है । इनमें अन्तर नहीं आता । पूर्व जन्म का पिता, पुत्र बन जाता है, पुत्र पिता बन जाता है, मां पत्नि बन जाती है, पत्नि माँ बन जाती है, बहन बन प्रेम और घृणा के सम्बन्ध वैसे ही रहते हैं जैसे पूर्व जन्म में थे । अन्तराल में भटकती आत्माएँ नए जन्म को ग्रहण करने को उत्सुक रहती हैं जो उसकी वासना की तीव्रता के कारण है । वासना कम होने पर पुनर्जन्म भी विलम्ब से होता है । शरीर तैयार होने पर ही जीवात्मा उसमें प्रवेश करती है । जीवात्मा के साथ मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार आदि के होने से ही पुनर्जन्म होता है । ये जीवात्माएँ भी समूह में पैदा होती हैं । अक्सर देखा गया है कई उत्कृष्ट आत्माएँ बिगड़ती हुई परिस्थिति को देख कर एक साथ जन्म लेती हैं जिससे समाज में एकदम क्रान्ति आ जाती है एवं समाज का पूरा ढाँचा ही बदल जाता है ।
SR No.032177
Book TitleMrutyu Aur Parlok Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Dashora
PublisherRandhir Book Sales
Publication Year1992
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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