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________________ ११२ ] मृत्यु और परलोक यात्रा सकते । वे अपने ही वर्ग के व्यक्तियों के साथ रहते हैं । ये वर्ग कर्म एवं मानसिक स्तर के अनुसार होते हैं । ये दूसरे खण्ड का हाल भी नहीं जान सकते । यहाँ पहुंचा व्यक्ति अपना रूप विचार मात्र से बदल सकता है तथा अपने विचारों का प्रभाव दूसरों पर डाल सकता है। .. ये सूक्ष्म रूप से किसी की सहायता भी कर सकते हैं व हानि भी पहुंचा सकते हैं। इस लोक के पदार्थ सूक्ष्म व पारदर्शक होते हैं । ये प्रेत, आह्वान पर माध्यम में आते हैं व अपना हाल भी बताते हैं। इनकी बुद्धि कम होती है जिनसे इनकी सूचनाएँ किसी काम की नहीं होतीं। ये अपने मित्रों एवं परिजनों को दिखाई देते हैं व स्वप्न में भी आते हैं। ये घर की वस्तुओं को गिराकर अपनी ओर ध्यान आकर्षित करते हैं। यदि कोई इनकी इच्छा पूरी कर दे तो इनकी सद्गति हो जाती है व आगे के लोक में निकल जाते हैं। इसकी पाँचवीं भूमिका अधिक आनन्दमय है। यह स्थूल स्वर्ग लोक है। ईसाइयों तथा मुसलमानों ने जिस स्वर्ग का वर्णन किया है वह इसी लोक का सर्वोच्च स्तर है। यहाँ मन चाही वस्तुएँ कल्पना मात्र से मिल जाती हैं। यहाँ के वासी उचित माध्यमों द्वारा पृथ्वी वासियों से बातचीत भी करते हैं। यहाँ सभी मत के लोग एक दूसरे की सहायता करते हैं।। यहाँ भाषा की कठिनाई बनी रहती है। ____इसकी सातवीं भूमिका में केवल बुद्धिमान स्त्री-पुरुष ही रहते हैं। यहाँ भी ये पुस्तकालय से पुस्तकें पढ़ते रहते हैं। राजनीतिज्ञ, राज्यकर्ता, यहाँ लम्बे समय तक रहते हैं तथा अपने अधूरे कामों को पूरा करते हैं। इन्हें मोक्ष पाने में विलंब होता है।
SR No.032177
Book TitleMrutyu Aur Parlok Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Dashora
PublisherRandhir Book Sales
Publication Year1992
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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