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________________ १०८] मृत्यु और परलोक यात्रा मृत्यु के बाद यह स्थूल शरीर का त्याग कर ऊँचे के कम घनता वाले लोकों में गमन करती है तथा अपनी ही घनता के अनुकूल लोकों में निवास करती है। सबसे कम घनत्व के आवरण के कारण वह ब्रह्मलोक में रहती है तथा इसका भी त्याग करने पर वह परमात्मा में लय हो जाती है। __लोकों का अर्थ ही है उस ईश्वर की आवरण युक्त अवस्था। जीवात्मा के सात शरीरों का सम्बन्ध इन्हीं सात लोकों से है जो अपने विकास के अनुसार ही इनमें प्रवेश करती इन लोकों का नामकरण कई प्रकार से किया जा सकता है किन्तु मानवीय चेतना, प्रकृति तथा उसके विकास क्रम के आधार पर इनका विभाजन निम्न प्रकार से किया गया है (ब) भू-लोक सभी लोकों में भू-लोक सबसे स्थूल अवस्था है जिसके ‘पदार्थ अधिक घनत्व वाले होने से चक्षुन्द्रिय से दृश्य हैं। इस लोक में स्थूल पदार्थ पिंड से लेकर द्रव, गैस, परमाणु तथा ईथर तक की सभी अवस्थाएँ सम्मिलित हैं। यही दृश्य जगत कहलाता है। यह स्थूल शरीरधारी प्राणी भी इसी प्रकार अधिक घनत्व वाले होने से इसी स्थूल जगत में निवास करते हैं । सूक्ष्म जगत के प्राणी इसमें आ सकते हैं किन्तु वे स्थूल इन्द्रियों द्वारा देखे नहीं जा सकते। ये सूक्ष्म दृष्टि प्राप्त व्यक्तियों को ही दिखाई देते हैं अथवा जब ये सूक्ष्म प्राणी अपने अणुओं को अधिक घनत्व वाला बना
SR No.032177
Book TitleMrutyu Aur Parlok Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Dashora
PublisherRandhir Book Sales
Publication Year1992
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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