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________________ [ १०५ ब्रह्मविदों की परलोक यात्रा (द) ब्रह्मलोक में जाने का मार्ग ब्रह्मलोक में जाने वाले साधकों तथा अन्य साधारण मनुष्यों की मृत्यु के बाद सर्वप्रथम वाणी के साथ समस्त इंद्रियाँ मन में स्थित हो जाती हैं, मन प्राण में, प्राण जीवात्मा में तथा जीवात्मा पाँचों सूक्ष्म भूतों में स्थित हो जाता है । यही सूक्ष्म भूत समुदाय तेज से मिला हुआ है, इसलिए इसे "तेज" भी कहते हैं । . यही जीवात्मा का सूक्ष्म शरीर (लिंग शरीर ) है जिसको लेकर यह ब्रह्मलोक की यात्रा करता है । इन सबके एक हो जाने पर हृदय के अग्र भाग में प्रकाश हो जाता है । ब्रह्मवेत्ता की यह ज्योति ब्रह्मरन्ध्र मार्ग से निकलती है तथा ब्रह्मलोक में जाने वाले की यह सुषुम्ना नाड़ी से निकलती है । साधारण मनुष्य की अपने कर्मानुसार अन्य मार्गों से निकलती है । ब्रह्मलोक में जाने वाली जीवात्मा तथा साधारण ममुष्य जिनका पुनर्जन्म होता है, सूक्ष्म भूत समुदाय में स्थित होने तक का मार्ग एक ही है क्योंकि ब्रह्मलोक में भी जीवात्मा अपने सूक्ष्म शरीर से ही जाता है । अन्य लोकों में गमन भी सूक्ष्म शरीर से ही होता है। यह सूक्ष्म शरीर मुक्तावस्था की प्राप्ति तक रहता है । ब्रह्मलोक में जानें वाले की जीवात्मा स्थूल शरीर से निकलकर पहले सूर्यलोक (तेज) में जाती है जो ब्रह्मलोक का द्वार है । यह साधारण मनुष्य के लिए बन्द रहता है । इस तेजोमय पदार्थ (सूर्य) की गति ब्रह्मलोक तक है । इसी मार्ग से ज्ञानी ब्रह्मलोक तक पहुंच जाता है । ब्रह्मलोक में जाने वाले
SR No.032177
Book TitleMrutyu Aur Parlok Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Dashora
PublisherRandhir Book Sales
Publication Year1992
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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