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________________ शिक्षण प्रक्रिया में सर्वांगपूर्ण परिवर्तन की आवश्यकता|| ५] स्वावलंबन के निमित्त गाँधी जी द्वारा सुझाए गए "बुनियादी-तालीम" के सिद्धांत अपनाने पड़ेंगे। छात्र शिक्षा के साथ-साथ ऐसा कुछ सीखता रहे, जिसके सहारे बिना नौकरी खोजे वह अपने क्षेत्र में, अपने बलबूते ही अपनी आजीविका चला सके। इस प्रतिपादन में गृह-उद्योगों की ओर संकेत किया गया है। इस प्रसंग को विचारकों और व्यवस्थापकों के ऊपर छोड़कर आगे बढ़ने के अलावा और कोई चारा नहीं है। दूसरा महत्त्वपूर्ण पक्ष है सुसंस्कारिता संवर्धन की विद्या। विद्यार्थी में इसे गहराई से जमाने-सींचने के लिए आज की परिस्थितियों में अकेला अध्यापक वर्ग भी बिना किसी बाहरी सहायता के बहुत कुछ करके दिखा सकता है। इस सच्चाई को चरितार्थ कर दिखाने वाले अनेक उदाहरण मौजूद हैं। अध्यापक को अपनी गरिमा समझने और चरितार्थ कर दिखाने में वर्तमान परिस्थितियाँ भी बाधा नहीं पहँचा सकतीं। जहाँ शिक्षण-तंत्र के वेतनमान सुविधा-साधनों को बढ़ाए जाने की बात है, वहाँ तक तो अधिकाधिक साधन जुटाने का समर्थन ही किया जाएगा। पर इसमें यदि कुछ कमी रहे, अड़चन पड़े, तो भी यह तो हो ही सकता है कि अध्यापकगण अपनी गुरु-गरिमा को अपने ही बलबूते बनाए रहें और अपने गौरव का महत्त्व अनुभव करते हुए बढ़ते चलें। शिक्षा एक प्रतिपादन है। उसका मूर्त रूप शिक्षक हैं। छात्रों का व्यक्तित्व सुधारने, उभारने में यों अभिभावकों को प्रधान रूप से जिम्मेदार माना जाता है, पर गहराई से सोचा या देखा जाए तो इस दायित्व से अध्यापक भी बचते नहीं हैं। उनकी भूमिका छात्रों का व्यक्तित्व विनिर्मित करने में अपने ढंग की अनोखी है। अभिभावक भी यह कार्य ठीक प्रकार से संपन्न करने में समर्थ नहीं हो सकते। कारण कि अभिभावकों में बच्चों के प्रति लाड़-दुलार इतना भरा रहता है कि उनकी त्रुटियों को बहधा वे समझ नहीं पाते और न उसे सुधारने के लिए आवश्यक समझदारी संजोए हुए होते हैं, इसके अतिरिक्त बालकों का घर पर बीतने वाला. समय प्रायः खाने, सोने, मस्ती करने और स्कूल की तैयारी में ही निकल जाता है। वे
SR No.032174
Book TitleShikshan Prakriya Me Sarvangpurna Parivartan Ki Avashyakta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeram Sharma, Pranav Pandya
PublisherYug Nirman Yojna Vistar Trust
Publication Year2011
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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