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________________ | १०|| शिक्षण प्रक्रिया में सर्वांगपूर्ण परिवर्तन की आवश्यकता सकती है, गीली मिट्टी से बर्तन, खिलौने बन सकते हैं, धातु को नरम बनाकर ही उसे किसी ढाँचे में ढालकर उपयोगी उपकरण के स्तर तक पहुँचाया जा सकता है। संस्कार ग्रहण करने की सही आयु उठती उम्र ही है। उसमें प्रधान उपलब्धि शिक्षा के रूप में अर्जित की जाती है, किंतु साथ ही यह भी सही है कि इन्हीं दिनों वातावरण के अनुरूप नवोदित बालकों का व्यक्तित्व भी भले-बुरे स्तर का विनिर्मित होता है। कुसंग एवं सत्संग उन्हें अत्यधिक प्रभावित करते हैं। स्कूलों में प्रवेश पाने से लेकर उसे छोड़ने तक की यह संधि ऐसी होती है, जिसमें भाव-संवेदनाओं का अत्यधिक उभार रहता है। वे वातावरण से, संबद्ध व्यक्तियों से प्रेरणाएँ ग्रहण करते और उन्हें जीवन क्रम में उतारकर परिपक्व करते जाते हैं। यही संचय विकसित स्थिति में पहुँचने पर व्यक्तित्व एवं चरित्र रूप में दृष्टिगोचर होता है। ___ इन तथ्यों को समझते हुए शिक्षण काल में लगने वाले बहुमूल्य समय में ही नीतिनिष्ठ समाजनिष्ठ की मनोभूमि बनाई जानी चाहिए। उन्हें श्रेष्ठ नागरिक एवं प्रतिभावान पुरुषार्थी बनाए जाने के लिए समुचित प्रयत्न होना चाहिए। आदतों का परिमार्जन एवं परिष्कार इन्हीं दिनों संभव है। इस संभावना को सार्थक कर दिखाने पर ही यह आशा अपेक्षा की जा सकती है कि समय आने पर श्रेष्ठ नागरिक बन सकेंगे। समाज को समुन्नत बनाने में सहयोग दे सकेंगे। अपने व्यक्तित्व और कर्तत्व के द्वारा देश, धर्म, समाज और संस्कृति की मूल्यवान सेवा कर सकेंगे। यही वैयक्तिक और राष्ट्रीय समृद्धि भी है। किसी देश के सुयोग्य नागरिक ही उसकी प्रगति के मूलभूत आधार होते हैं। महामानवों का मूल्य इतना अधिक होता है, जिस पर कुबेर की संपदा न्यौछावर की जा सके। प्रखरता संपन्न व्यक्ति ही पिछड़ेपन की परिस्थितियों को समाप्त करने एवं हर क्षेत्र में प्रगतिशीलता का वर्चस्व भरने में सफल होते हैं। सुविकसित, सुसंस्कृत प्रतिभाओं को नर देव माना गया है। इस स्थिति तक कैसे पहुँचा जाए ? सामान्य से असामान्य स्तर का बनने में किस प्रकार सफलता पाई जाए ? इस प्रसंग पर हर विचारशील को गंभीरता पूर्वक विचार करना चाहिए कि राष्ट्र की उदीयमान प्रतिभाओं को स्कूल, कॉलेज में पढ़ने वाले छात्रों को, ग्राम-शहर में रहने वाले
SR No.032174
Book TitleShikshan Prakriya Me Sarvangpurna Parivartan Ki Avashyakta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeram Sharma, Pranav Pandya
PublisherYug Nirman Yojna Vistar Trust
Publication Year2011
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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