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________________ आयुष्यकम के बंध के अनुसार हमें परलोक में जन्म लेना पड़ता है। प्रायः आयुष्य का बंध वर्तमान जीवन के २/३ दो तिहाई भाग बीत जाने के बाद होता है, उस समय बंध न हुमा हो तो अवशिष्ट वर्तमान अायुष्य का दो तिहाई भाग बीतने पर आगामी भव के आयुष्य का बंध होता है यदि उस समय भी आयुष्य का बंध न हो तो मृत्यु के समय तो आयुष्य कर्म का अवश्य बंध होता ही है। जरा, विचार कर। आत्महत्या के विचार में/मृत्यु के विचार में आयुष्यकर्म का बंध हो जाय, तो सद्गति के आयुष्य का बंध होगा या दुर्गति के ? हमें उत्तरोत्तर आत्मविकास के पथ पर आगे बढ़ना है। लोकोत्तर आत्म-उत्थान के मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए अध्यवसायों की शुद्धि अत्यन्त ही अनिवार्य है। अध्यवसायों की शुद्धि के लिए सतत जागृति अनिवार्य है। तीव्र-वेदना में समाधि समता लाने के लिए एक सुन्दर उपाय है-अपने से अधिक वेदनाग्रस्त जीवों की भयंकर पीड़ाओं का विचार करना। नरक और निगोद के जीवों की पीड़ा तो हमारे लिए परोक्ष है, किन्तु मनुष्य और तिर्यंचों की पीड़ाओं को तो साक्षात् देख सकते हैं न ? बम्बई का जसलोक अस्पताल तो तुमने देखा होगा ? जाने साक्षात् नरकागार है। नाना प्रकार की भयंकर वेदनाओं से संत्रस्त मनुष्यों की कैसी विकट हालत है ? मृत्यु की मंगल यात्रा-01
SR No.032173
Book TitleMrutyu Ki Mangal Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1988
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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