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________________ 'हे भगवन्त ! प्राणी जन्म धारण क्यों करता है ?' प्रभु ने कहा-'हे गौतम ! कर्म के कारण आत्मा को जन्म धारण करना पड़ता है।' 'हे भगवन्त ! आत्मा को कर्मबन्धन क्यों है ?' 'हे गौतम ! राग-द्वेष की परिणति के कारण ही आत्मा कर्म का बन्ध करती है।' प्रस्तुत वार्तालाप से स्पष्ट है किराग-द्वेष से कर्मबन्ध होता है। कर्मबन्ध में प्रात्मा देह धारण करती है और देह धारण करने वाले की मृत्यु होती है । सारांश यही है किजन्म-मृत्यु का मूलभूत कारण तो राग-द्वेष ही है । .. जो प्रात्मा राग-द्वेष से मुक्त बन गई, वह प्रात्मा कर्मबन्धन से मुक्त हो जाएगी और कर्मबन्धन से मुक्त प्रात्मा को जन्म धारण करना नहीं पड़ता है। इसलिए इस मनुष्य जीवन में हमारा सारा प्रयत्न और पुरुषार्थ अजन्मा बनने की साधना के लिए ही होना चाहिये और उस साधना के लिए हमें राग-द्वेष की परिणति को मन्द करना होगा। अनुकूलता/सुख में राग नहीं । प्रतिकूलता/दुःख में द्वेष नहीं । ज्यों-ज्यों जीवन-व्यवहार में ( 14 )
SR No.032173
Book TitleMrutyu Ki Mangal Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1988
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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