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________________ १६६ में निवास करनेवालो हे ही देवी ! मेरी लज्जा रखो । महापुण्डरीक हूद में निवास करनेवाली हे बुद्धिदेवी ! मुझे बुद्धि दो । तिगिच्छ हृद में निवासकरनेवाली हे धृतिदेवी ! मुझे धैर्य दो । केसरि हद में निवासकरनेवाली हे कीर्तिदेवी ! मेरे यश और कीर्तिको फैलाओ । ॐ ही विश्वरूपिणि, विभूति विभूतिरूपिणिसृष्टि सष्टिरूपिणि, धृति घृतिरूपिणि, कीर्ति कीर्तिरूपिणि, सिद्धि सिद्धिरूपिणि, सवसुखसाम्राज्यदायिनि मम त्रिलोकसंपदं कुरु कुरु, हिरण्यसुवर्णैः सुखसिद्धिसौभाग्यैः श्रेष्ठैः सर्वोपकरणः सर्वभोगैः सर्वोपभोगैश्च मम कोषकोष्ठागाराणि भर भर पूरय पूरय ।
SR No.032168
Book TitleAdbhut Navsmaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj, Jayantilal Bhogilal Bhavsar
PublisherLakshmi Pustak Bhandar
Publication Year1977
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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