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________________ ९६ :: परमसखा मृत्यु हुए हैं। ___इस पर से स्पष्ट होता है कि मृत्यु मात्र पाप या पुण्य का फल नहीं है। जन्म के साथ मृत्यु जुड़ी हुई है और यह अच्छी बात है। ___ सामान्य अनुभव है कि मनुष्य मृत्यु को अनिष्ट समझता है और मृत्यु से डरता है । पशु-पक्षियों के विचार हम नहीं जानते, लेकिन हम देखते हैं कि तमाम प्राणी मौत से बचना तो चाहते ही हैं । शायद इतर प्राणी मनुष्य के जितना मौत से नहीं डरते होंगे। चन्द लोग कभी-कभी निराश होकर या जीवन से ऊबकर आत्महत्या करते हैं । शास्त्रों ने ऐसी आत्महत्या को बुरा माना है और कहा है कि आत्महत्या से मनुष्य का कोई भी सवाल हल नहीं होता। कायर बनकर या जीवन से ऊबकर जो लोग आत्महत्या करते हैं, उनके लिए पुनर्जन्म निश्चित है ही । इतना हो नहीं, किन्तु 'आत्महत्या' जैसा बुरा काम किया, इसलिए उसे बुरा ही जन्म मिलेगा और 'आत्महत्या का पाप' धोने के लिए विशेष तपस्या अथवा साधना करनी पड़ेगी। ___ इतिहास से मालूम होता है कि जिस तरह छूत का रोग फैलने पर बहुत से लोग पट-पट मरने लगते हैं, उसी तरह "जीवन दुःखमय है, हमने जन्म लिया, यही एक गलती हुई, इसलिए प्रयत्नपूर्वक जीवन से निकल जाना चाहिए," ऐसा गलत तत्वज्ञान लोगों में फैलने के कारण केवल हमारे देश में ही नहीं, अन्य देशों में भी आत्महत्या की बीमारी कभी-कभी फैली थी और फिर धर्मनिष्ठ लोगों को उसके खिलाफ जोर से प्रचार करना पड़ा था। - आज ऐसी स्थिति नहीं है। सभ्य और संस्कारी सब देशों में आत्महत्याओं के किस्से भी दर्ज किये जाते हैं और देखा
SR No.032167
Book TitleParam Sakha Mrutyu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaka Kalelkar
PublisherSasta Sahitya Mandal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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