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________________ अनुपान : मरण का स्मरण :: ८३ मरण का अनुभव और साक्षात्कार भी ऐसा ही होता है। ऐसे अनुभव का रस चखने के लिए भी मनुष्य को मरण की इच्छा और प्रतीक्षा करनी चाहिए। उसके बिना जीवन का परम रहस्य पूर्ण नहीं होगा। . मरण के बाद दूसरा जन्म आता है और जीवन-परम्परा चलती रहती है। ऐसी परम्परा की समृद्धि पाने के लिए मरण आवश्यक है, यह बात तो है ही; किन्तु मोक्ष की साधना करके स्थायी, पक्की मौत प्राप्त करने के बाद की जिस अवस्था की कल्पना हम कर सकते हैं, उसका अनुभव करने के लिए भी यानी मृत्यु की, मौतके बाद जो अद्भुत जीवन हमें मिलने वाला है, उसकी प्राप्ति के लिए भी, मरण की महेच्छा हमें रखनी होगी। इसमें कोई संदेह नहीं कि मरण ही जीवन-स्वामी परमात्मा की हमारे लिए सबसे श्रेष्ठ देन है। मरण के द्वारा ही हम जीवन को सफल बना सकते हैं और उसका रहस्य अनुभव में लाकर जीवन के साथ एकरूप हो सकते हैं। तादात्म्य ही अंतिम, सर्वोपरि और स्थायी आनंद है। १४ / अनुपान : मरण का स्मरण एक राजा को अखंड यौवन का आनन्द लेना था। वह एक साधु के पास गया, जिसके पास पारे की दवाई बनाने की रससिद्धि थी। साधु ने कहा, 'मैं कहता हूं, वैसी दवा मेरी देखरेख में तैयार करायो और उसका छह महीने तक सेवन करो। शर्त यह कि छह महीने तक दृढ़ ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ेगा।" राजा ने बात मान ली। कुशल लोगों को बैठाकर पारे की दवाई बनाई गई। एक अच्छा मुहूर्त देखकर साधु ने राजा को दवाई देना शुरू किया। खूबी यह कि राजा जितनी औषध लेता
SR No.032167
Book TitleParam Sakha Mrutyu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaka Kalelkar
PublisherSasta Sahitya Mandal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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