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________________ मरण का साहचर्य :: ८१ कितना अभद्र और शर्मनाक है ? सुगंधित जीवनमाला हाथ में लेकर उसके स्वागत के लिए हम तैयार क्यों न रहें ? ___ यह तैयारी यकायक नहीं हो सकती। इसके लिए तो मरण के साथ स्नेही के तौर पर परिचय बढ़ाने की और बनाये रखने की साधना जरूरी है। एक-दूसरे को देखते ही दोनों के चेहरों पर प्रसन्नता का स्मित फैलना चाहिए और दृढ़ आलिंगन के लिए दोनों ओर से उत्कंठा होनी चाहिए। किसी ने कहा है कि बंदरगाह तक पहुंचने की यात्रा करते बीच में हो जहाज समुद्र की किसी छिपी चट्टान पर टक्कर खा जाय और जहाज के साथ हम बंदरगाह की जगह समुद्र के तल तक पहुंच जायं-वैसी स्थिति है हमारे मरण की। मरण तो जीवन-यात्रा को यकायक विफल करनेवाला अपघात या प्रकस्मात् है । इसके लिए काव्य-स्फुरण कहां से हो ? इस प्रश्न का जवाब हम क्या दें? जीवन एक अदभत उपन्यास है, जिसके लेखक हम नहीं, किन्तु भगवान हैं। उपन्यास में तरह-तरह के अकस्मात् आते हैं, जिनका भी लेखक या कर्ता की दृष्टि के प्रयोजन होता है । हम उसे नहीं जानते, इसीलिए हम उसे अकस्मात् कहते हैं । लेकिन भगवान के घर में यानी योजना में उसका कस्मात् होता ही है। (संस्कृत में कस्मात् माने कहाँ से अथवा किसलिए ? कोई घटना घटी और उसका कारण अथवा प्रयोजन हम समझ न सके तो 'कस्मात् कारणात् यह घटना घटी, सो नहीं जानते' इतना कहने के लिए 'अकस्मात्' शब्द काम में लाया जाता है।) ऐसे अकस्मातों के द्वारा अपना जीवन-प्रयोजन सिद्ध करने का लुत्फ भगवान में है, इसका इलाज क्या ? इलाज इतना ही है कि अकस्मात् का कारण और प्रयोजन समझने की हम कोशिश करें और न समझ सकें तो भगवान के लुत्फ के साथ, रस के साथ,
SR No.032167
Book TitleParam Sakha Mrutyu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaka Kalelkar
PublisherSasta Sahitya Mandal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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