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________________ मरण की तैयारी :: ६७ ही उन्हें छोड़ देने से आरा रहता है और मानसिक शान्ति भी रहती है। जिस तरह युवावस्था में मनुष्य पुरुषार्थ के नये-नये मौके ढूंढ़ता है उसी तरह बुढ़ापे में उसे चिन्तनपूर्वक मृत्यु की तैयारी करनी चाहिए। मृत्यु का चिन्तन हर तरह से पाल्हादक और मुफ़ोद है । मृत्यु का स्मरण रहने से हमारे सब कार्य में योग्य प्रमाण संभाला जाता है। जिस तरह घर में मेहमान आने पर हम उनका ख्याल रखते हैं और अपनी जिम्मेदारी याद रखकर गफ़लत नहीं होने देते, अथवा किसी के घर पर मेहमान होकर रहते हुए हम एक क्षण के लिए भी भूलते नहीं कि हम मेहमान हैं, घर मेजबान का है और उसके लिए बोझ-रूप या बाधा-रूप नहीं बनना है, इसी तरह जब हम बुढ़ापे में मृत्यु के क्षेत्र में पहुंच जाते हैं, तब हमें सोचना चाहिए कि अब हम काल भगवान के राज में दूर तक पहुंच गए। अब उन्हीं की हुकूमत में उनके कानून के अनुसार रहने से हर तरह का प्राराम रहेगा । जो लोग तत्त्वदर्शी हैं, वेदान्त विद्या का जिन्होंने अध्ययन किया है, उनके लिए तो यह दृष्टि हर अवस्था में रहती है। अमर आत्मा का उनका चिन्तन कभी ढीला नहीं होता । उसी तरह जीवन में मृत्यु का साक्षात्कार भी ध्रुव है, यह बात वे कभी नहीं भूलते । उनकी तैयारी हमेशा होती है। किसी ने ज्ञानेश्वर से कहा, 'म्हातारपणी भक्ति करूं ?' उन्होंने फ़ौरन प्रश्न पूछा, 'पायुष्य काय तुझे आज्ञा धारू, ?' ('बुढ़ापा पाने पर भगवान की भक्ति करेंगे, ऐसा कहने वाले से योगीराज ज्ञानेश पूछते हैं, “क्या आयु-मर्यादा तुम्हारी आज्ञाकारी सेवक है ?') यह तो हुई सतर्क तत्त्वदर्शी की बात । नित्य के व्यवहार में
SR No.032167
Book TitleParam Sakha Mrutyu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaka Kalelkar
PublisherSasta Sahitya Mandal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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