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________________ मरण-दान :: ४७ याद में मरने की इच्छा नहीं होती। अनशन द्वारा किसी के मन पर और हृदय पर असर करने का उद्देश्य होता है। असर होते ही अनशन छोड़ने का संकल्प होता है। थोड़ा समय अनशन करके सन्तोष मानने की उसमें बात नहीं है। सात या दस दिन के उपवास से भी असर न हुआ तो बारह-पंद्रह दिन तक चलाने की और ऐसे चलाते-चलाते देह अगर गिर जाय तो उस परिस्थिति को भी स्वीकार करने का संकल्प होता है। उपवास द्वारा असर करने का संकल्प और आवश्यक होने पर मरने की तैयारी, यह होता है उसका स्वरूप । 'मारणान्तिक सल्लेखना' में मरण ही प्राप्तव्य होता है। इसीलिए सामान्य लोग उसे आत्महत्या मानते हैं और उसका विरोध करते हैं। मृत्यु शिकारी के समान हमारे पीछे पड़े और हम बचने के लिए भागते जायं, यह दृश्य मनुष्य को शोभा नहीं देता । जीवन का प्रयोजन समाप्त हुआ, ऐसा देखते ही मृत्यु को आदरणीय अतिथि समझकर उसे आमन्त्रण देना, उसका स्वागत करना और इस तरह से स्वेच्छा-स्वीकृत मरण के द्वारा जीवन को कृतार्थ करना, यह एक सुन्दर आदर्श है । मानवीय जीवन का चिन्तन करने वालों को इसकी गहराई पर विचार करना चाहिए। अगस्त, १९५६ ७ / मररण-दान हम लोग भ्रातृभाव से, कौटुम्बिक भाव से या दयाभाव से मनुष्यों की और मनुष्येतर जीवों की कुछ-न-कुछ सेवा करते ही रहते हैं। सेवा-वृत्ति मनुष्य-स्वभाव का सहज और सुन्दर अंग है। जहां सेवा की आवश्यकता है, उस प्रसंग से मुंह न मोड़ना और जहां सेवा की जरूरत नहीं है, वहां मोहवश होकर
SR No.032167
Book TitleParam Sakha Mrutyu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaka Kalelkar
PublisherSasta Sahitya Mandal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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