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________________ ३६ :: परमसखा मृत्यु है, उसका जीवन तो एक अखण्ड और सतत मरण ही बन जाता है । प्रात्मा क्या है, परमात्मा क्या है, जीवन क्या है, धर्म क्या है, समाज क्या है, नागरिकों का कर्तव्य क्या है ये सवाल मनुष्य-जीवन के लिए जितने महत्व के हैं, उतना ही महत्व का सवाल है-मरण क्या है ? और उसके प्रति हमारी वृत्ति कैसी रहनी चाहिए? ____ यह तो हमेशा की बात हुई। लेकिन आजकल तो मृत्यु का मौसम है। प्लेग, इन्फ्लुएंजा, हैजा, अकाल आदि जब बढ़ते हैं, तब तो मृत्यु की फसल अच्छी होती ही है। लेकिन उन दिनों सब-के-सब प्राणी मृत्यु से बचने की कोशिश करते हैं। आजकल के त्रिखंडव्यापी युद्धों में तो मनुष्य ने ही संहारलीला चलाई है। मनुष्य ने तो ऐसा संहार मचाया है कि प्रलयकाल का ताण्डवनृत्य चलानेवाले प्रत्यक्ष भगवान शिवजी भी उसके पास तक सबक सीखने के लिए आ जायं। ___ अगर मृत्यु की शक्ति पर यह अंधविश्वास न होता तो मनुष्य मनुष्यों को मारने का मसाला दिग्दिगंतों से इकट्ठा न करता। जिस दिन मनुष्य का मृत्यु पर से विश्वास उठ जायगा, उस दिन मनुष्य-जाति का जीवन-क्रम ही बदल जायगा । युद्ध में मृत्यु का जो साक्षात्कार किया जाता है, उसके दो पहलू हैं--एक है मारना, दूसरा है मरना । जिस दिन हम मरने के गुण-दोष अच्छी तरह समझ लेंगे, उसी दिन हम निर्भय वीर बनेंगे, सच्चे क्षत्रिय बनेंगे, और जिस दिन हम मारने के गुण-दोष पहचान लेंगे, उसी दिन हम हत्या करना छोड़ देंगे और सच्चे सत्याग्रही बनेंगे । ___मनुष्य-जीवन में जबतक एक तरफ लोभ, मोह और अहंकार तथा ईर्ष्या, असूया आदि दुर्गुण हैं, तबतक दूसरी ओर मनुष्य के लिए चिंता और साधना का मुख्य विषय है,
SR No.032167
Book TitleParam Sakha Mrutyu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaka Kalelkar
PublisherSasta Sahitya Mandal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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