SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मृत्यु का तर्पण : १ :: २३ मसाला तैयार करके रखते हैं। अब मनुष्य मनुष्य के बीच के व्यवहार का विचार करें। आजकल के महायुद्धों में क्या चल रहा है ? जर्मन लोग लन्दनवासियों का संहार करना चाहते हैं और ब्रिटिश बौम्बर जर्मनों का सत्यानाश करने पर खुश हो जाते हैं । यह कौन कह सकता है कि मनुष्य का मरण भी सब लोग अनिष्ट ही मानते हैं ? जब कोई न्यायाधीश किसी खूनी शख्स को फाँसी को सजा देना चाहता है, तब वह खूनी व्यक्ति और वह न्यायाधीश, दोनों मृत्यु के ही प्रेमी होते हैं । खूनी व्यक्ति ने अपने दुश्मन का मरण चाहा, इसलिए न्यायाधीश ने समाज का प्रतिनिधि बन कर खूनी का मरण चाहा। एक का कृत्य समाज-द्रोह माना गया, दूसरे का समाज-सेवा। इनमें फर्क होते हुए भी दोनों मृत्यु के ही खैरख्वाह साबित हुए, इसमें शक नहीं है। और क्या मनुष्य अपनी मृत्यु भी हमेशा अनिष्ट ही समझता है ? निराश होकर आत्महत्या करने के लिए जो तैयार हुआ है, ऐसे दुर्दैवी आदमी से जाकर पूछिये कि क्या वह मृत्यु को अनिष्ट समझता है ? और उन बूढ़े-बूढ़ियों को भी पूछ लीजिये, जिनके भोगेन्द्रिय और ज्ञानेन्द्रियों ने तो उनसे रुखसत ले ली है, लेकिन लोभ और प्राण जिन्हें नहीं छोड़ रहे हैं, वे भी कहेंगे कि हम दिन-रात भगवान से यही प्रार्थना कर रहे हैं कि वह हमें मौत का आराम प्रदान करें। और प्रेमी जीव भी कई दफा यही चाहते हैं कि उनके प्रियतम की अन्तिम पीड़ा दूर करने के लिए अगर मरण ही एकमात्र चारा हो, तो उस निष्ठावान मित्र को भेजने में भगवान क्षण की भी देरी न करें। ___ महादजी शिन्दे के एक सरदार को दुश्मनों ने तोप के सामने खड़ा करके उड़ा दिया। छिन्न-भिन्न होकर वह किले
SR No.032167
Book TitleParam Sakha Mrutyu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaka Kalelkar
PublisherSasta Sahitya Mandal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy