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________________ मोच या मीत :: २१ जो पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं उनके लिए तो मरण और नींद के बीच तत्त्वतः कोई अंतर नहीं है । कोई थका हुआ आदमी अगर सोना चाहे तो हम हाहाकार नहीं करते, बल्कि उसके सोने की तैयारी और उसकी नींद में कोई खलल न पड़े, इसका प्रबंध कर देते हैं । मरणोत्तर जीवन के बारे में अगर इतना ही विश्वास होता तो मरने वाले की स्थिति से बगैर अकुलाये हम उसके छुटकारे की सब तैयारी भी कर देते । थके-माँदे होते हुए भी जो काम करते हैं, उन मित्रों से जिस प्रकार हम सोने का आग्रह करते हैं, उसी प्रकार मरने के अधिकारी लोगों को भी हम अधिक जीने की तकलीफ न उठाने की सिफारिश करते हैं। मरण का डर और जीने का हौसला, असल में, मरणोत्तर स्थिति के बारे में हमारे अज्ञान के कारण है। पुनर्जीवन के बारे में अपनी श्रद्धा की कसौटी है। - किसी ने कहा है कि मनुष्य को अगर पहले से ही मालूम हो कि मरने में एक प्रकार का आनंद है, तो सब लोग मरने के लिए ही दौड़ेंगे। असल में मरने में दुःख नहीं है । जिसको हम मरण का दुःख कहते हैं, वह तो कष्ट के साथ जीने का दुःख है । वह जब असह्य हो जाता है तब मरण मित्र की तरह आकर हमारा उससे छुटकारा करता है । दुःख जीवन का होता है, मरण का नहीं। और जीवन तो खर्च करने के लिए है। उपयोग के लिए है । सत्कार्य और महत्कार्य में अगर हम जीवन का उपयोग न करें तो जीने में स्वाद ही क्या रहेगा ? नासमझ प्राणियों को बुद्धि पूरअसर जीना नहीं आता। इसलिए प्रकृति ने उनको जीने का हौसला दिया है। यह जिजीविषा सिखानी नहीं पड़ती। प्राणिमात्र में वह होती ही है। प्राणिमात्र का शिकार करना जिसका स्वभाव है, वह मरण हमारे पीछे दौड़ता आये
SR No.032167
Book TitleParam Sakha Mrutyu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaka Kalelkar
PublisherSasta Sahitya Mandal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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