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________________ १४८ :: परमसखा मृत्यु होता है, दफन करने में कम, तब जवाब में गांधीजी ने लिखा, "वैज्ञानिक ढंग से अगर दफन किया जाय तो उसका खर्चा अधिक ही होगा । रामकृष्ण परमहंस और विवेकानन्द संन्यासी होते हुए भी उन्होंने अपने लिए अग्नि संस्कार ही पसन्द किया । आजकल यूरोप में कहीं-कहीं शवदहन के लिए एक भट्टी खड़ी कर देते हैं, जिसके अन्दर शरीर को अग्निसात करने के बाद शरीर का जो भस्म रह जाता है, वह किसी बर्तन में रख देते हैं । ऐसे बर्तन को वहां 'उर्न' कहते हैं । यहाँ की भट्टी में शरीर के भस्म के साथ लकड़ी या उपले की राख मिलती नहीं । हमारे देश में हमारे पुरखानों ने शव दहन - विधि को, जहां तक हो सके, सस्ता और सर्वमान्य बनाया है । कम-से-कम दहन - क्रिया तो सादी, सस्ती और कारगर बनाई है। अंतिम क्रिया में गरीब और अमीर का भेद दूर किया है और समाज को इस बारे में उसका कर्तव्य सिखाया है । 1 मृत शरीर को उठा ले जाने का काम समाज के सब लोग करते हैं | अर्थी भी सस्ती से सस्ती होती है । गांव में जो चीज आसानी से मिलती है, उसी से अर्थी बनाने का आसान तरीका लोगों ने ढूंढ निकाला है। मृत शरीर को जलाने का तरीका भी हर जगह प्रासान-सेआसान बनाया है । नदी किनारे का एक ढंग, जहां लकड़ी बहुत मिलती है, वहां दूसरा ढंग; जहां लकड़ियां मिलती ही नहीं, वहां उपले काम में लाकर शरीर जलाते हैं । उसके लिए शरीर का सिर से पांव तक लम्बा रहना अनुकूल नहीं है, इसलिए दोनों हाथ छाती पर लेते हैं और पांव का करीब पद्मासन बनाते हैं । इस तरह से चिता गोल बन सकती है । ईंधन नीचे कितना हो, ऊपर कितना हो, यह निश्चित होता
SR No.032167
Book TitleParam Sakha Mrutyu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaka Kalelkar
PublisherSasta Sahitya Mandal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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