SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्षण-क्षण-पुनर्जन्म : १३१ २३ / क्षण-क्षरण पुनर्जन्म जिनके पास अनेक प्रान्तों से, अनेक देशों से और अनेक विषयों में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के खत हमेशा आते हैं, उनका यह अनुभव होगा। जो खत आते हैं उनमें से चन्द तो ऐसे कार्यकर्ताओं के होते हैं, जिन्होंने किसी एक काम के लिए अपना जीवन अर्पण किया है । ऐसे लोग अपनी अनुभव की और काम की ही बातें लिखते हैं। चन्द लोग तत्त्वचिंतक होते हैं। उन्हें तरह-तरह की बातें सोचने की आदत पड़ जाती है। ऐसी हालत में जिसको अपना पत्र-व्यवहार हद से बढ़ जाने का डर रहता है, वह अपने जवाब में कोई सवाल पूछने की गलती नहीं करता । सम्पूर्ण जवाब भेज दिया और छुट्टी पाई। अगर कोई चीज अस्पष्ट रही तो फिर से खत आयेगा। सवाल पूछा तो जवाब में लम्बा-चौड़ा खत पायगा। फिर उसका जवाब भेजना पड़ेगा और खत-पत्रों का तांता बढ़ता जायगा । इसलिए चतुर पुरुष, जिसके पास अपनी शक्ति जितनी ही प्रवृत्ति चलाने की जीवन-कला है वह इस बात का खास प्रयत्न करता है कि अपना जवाब आखिरो हो और उसके बारे में फिर से कोई खत न आये। पुनर्जन्म को टालने की बात ऐसी ही है। जो प्राप्त कर्तव्य है, उसे निष्काम भाव से पूरा करना, फल मिले या न मिले, उसके बारे में उदासीन रहना और सबसे महत्व की बात तो यह कि जो कुछ भी प्रवृत्ति हम करते हैं, उसमें से कोई नया संकल्प न उठने पाये और पुराने संकल्प की कोई दुम, उसका कोई अवशेष न रहे, इसके लिए सावधान रहना । यही है सच्चा तरीका पुनजन्म टालने का। साधारणतया लोग सोचते हैं कि मृत्यु के बाद दूसरा जन्म
SR No.032167
Book TitleParam Sakha Mrutyu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaka Kalelkar
PublisherSasta Sahitya Mandal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy