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________________ १२६ : परमसखा मृत्यु की कल्पना का इतना सहारा दिया जाता है कि हमने जिस प्रकार सरकार द्वारा शराबबंदी का कार्यक्रम आगे ले जाने की सोची है, उसी प्रकार सरकार द्वारा मदरसों से और धर्मोपदेशों में जो दैव और पुनर्जन्म की नसीहत दी जाती है, वह भी बंद कर देने की हमें सोचनी चाहिए। स्वामी विवेकानन्द ने एक बार माया की व्याख्या करते हुए कहा था कि कोई चीज जैसी है, वैसी क्यों है, इसका कारण या उत्पत्ति ढूंढ़ने पर भी जब हाथ नहीं पाती, तब लोग उस स्थिति को 'माया' कहते हैं। प्रात्मा शुद्ध, बुद्ध, नित्य मुक्त होते हुए भी उसमें मलिनता, एकांगिता का भान कहां से आता है ? इस सवाल का सीधा जवाब एक ही हो सकता है, "हमें मालूम नहीं है।" यही हम दूसरे शब्दों में कहते हैं कि "यह माया है।" इस प्रकार माया, दैव, पूर्वजन्म आदि बातें इस बात का इकरार करती हैं कि हमारी खोज करने की शक्ति थक गई है, रुक गई किसी भी वस्तु का स्थूल या सूक्ष्म कारण ढूंढ़ते समय हमें इसी जन्म के अपने गुण-दोष, संयोग, करतूत आदि पहले जांच लेने चाहिए। सामाजिक परिस्थिति का असर कहां और कितना होता है, यह भी ढूंढ़ लेना चाहिए। इतना करने के बाद भी किसी घटना की उत्पत्ति न मिले तो मां-बाप या वंश-परंपरागत से प्राप्त हुए संस्कारों, स्वभाव की खूबियों और मर्यादाओं की खोज करनी चाहिए। जिस वस्तु का कार्य-कारण भाव इसी जन्म में मिल सके, उसे पहले ढूंढ़ निकालना चाहिए। इस प्रकार तमाम दिशाओं में कोशिशें करने के बाद कुछ बचे तो आदमी कह सकता है कि शायद पूर्वजन्म की किसी घटना का असर यहां काम कर रहा होगा। जो पूर्वजन्म को मानते हैं, वे भी तो यह नहीं कहते कि, "हम
SR No.032167
Book TitleParam Sakha Mrutyu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaka Kalelkar
PublisherSasta Sahitya Mandal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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