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________________ १२२ :: परमसखा मृत्यु पुनर्जन्म पर विश्वास रखने से दो बातें आसान हो जाती हैं। संसार में जहां-तहां जो अन्याय हुआ करता है, उससे हमारा मन अकुला जाता है। हमें कभी-न-कभी न्याय जरूर मिलेगा, इस विश्वास के लिए कोई आधार नहीं है। इस हालत में पुनर्जन्म की कल्पना हमें काफी मददगार सिद्ध हुई है। इस जन्म में जो न मिला, वह आनेवाले जन्म में जरूर मिलेगा, मन को यह समझाने में कठिनाई महसूस नहीं होती। ___मृत्यु का मुकाबला करते समय भी पुनर्जन्म की कल्पना हमें काफी मददगार होती है। दूसरी तरफ से देखें तो पुनर्जन्म की कल्पना हमारे लिए कतई हानिकारक नहीं है। इसीलिए लोग पुनर्जन्म को आसानी से और आतुरता से स्वीकार करते __पुनर्जन्म की कल्पना हमें कहां हानिकारक मालूम होती है, यह अब हम देखें। एकाध मिसाल से शायद यह खयाल ज्यादा साफ होगा। प्राथमिक शालाओं के शिक्षकों को छड़ी का प्रयोग करने की आदत होती है। बच्चों का जीवन सनातन काल से जिस ढंग से चलता आया है उसका खयाल न होने से शिक्षक अपनी संस्कारी या असंस्कारी इच्छा के अनुसार बच्चों के लिए एक ढांचा बनाने की कोशिश करते हैं। बच्चे उस ढांचे में जब नहीं उतरते तब शिक्षक को खीज आती है। वह मानता है कि मदरसे में उसका राज टूट गया है। इससे उसको गुस्सा आता है। गस्सा स्वभाव से ही हिंसक है। इसलिए उसकी बच्चों को पीटने की इच्छा होती है। बच्चों को पीटकर जब वह तृप्त होता है, तभी वह शान्त होता है। इसका मतलब यह है कि वह पीटता है-बच्चों के हित के लिए नहीं, बल्कि अपने गुस्से का वेग शान्त करने के लिए । शिक्षक के पीटने से बच्चे डरते
SR No.032167
Book TitleParam Sakha Mrutyu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaka Kalelkar
PublisherSasta Sahitya Mandal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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