SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मरणोत्तर जीवन :: १०६ जो हो, मृत्यु हमारे जीवन का एक अत्यन्त आवश्यक और पोषक अंग है, इतना तो स्पष्ट होता है, लेकिन मृत्यु की अवधि विकास-शून्य होगो, ऐसी कल्पना करना हमारे लिए मुश्किल है। इसलिए हम तो दिवस और रात्रि के क्रम के जैसा ही जीवन और मरण का क्रम है, ऐसा मानते हैं। पुराणकारों ने दो जोवनों के बीच की अवधि को कथाएं रचकर उसकी एक काल्पनिक स्वप्न-सृष्टि बनाई है। हमारी कल्पना के लिए उनके प्रयास पोषक हैं। लेकिन पुराणकारों की इस मरण-सृष्टि का हम कुछ विशेष महत्व नहीं मानते, क्योंकि पुराण न तो केवल इतिहास है, न केवल कल्पना है, वह एक काव्यमय सृष्टि है । संस्कृत के आकलन के लिए वह उपयोगी है और विनोद के लिए उसका उपयोग स्पष्ट है ही। ___ मरण का भय रखकर बुद्धि को जड़ बना देना और कल्पना को मूछित करना हमें पसन्द नहीं है। अगर हम ज्ञानोपासक बनकर मृत्यु के रहस्य को ढूंढ़ने की कोशिश करेंगे, तो हमारा विश्वास है कि भगवान की कृपा से हमें उसमें सफलता मिलेगी, निराश नहीं होना पड़ेगा। हमारा यह भी विश्वास है कि मरणावधि का जीवन हमारे प्रकट जीवन से कम महत्व का नहीं है। १-११.६६ १८ । मरणोत्तर जीवन स्वर्ग और नरक की लोगों में रूढ़ बनी हुई कल्पना मनुष्य के अनुभव के आधार पर ही खड़ो की गई है, इतना समझ लेने के बाद उसकी बहुत कीमत नहीं रह जाती। फिर भी मन की यह वृत्ति बनी रहती है कि मनुष्य जीवन से अधिक उच्च जीवन अवश्य होना चाहिए और मनुष्य-जीवन से अधिक हीन, अधिक
SR No.032167
Book TitleParam Sakha Mrutyu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaka Kalelkar
PublisherSasta Sahitya Mandal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy