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________________ ( १० ) मरण पाने का सौभाग्य सब प्राणियों के लिए रक्खा गया है। ऐसे अवश्यंभावी मरण का, जीवन को कृतार्थ करने वाले देहान्त या प्राणान्त का चिन्तन मनुष्य न करे, मरण को स्वीकार करने की और उससे लाभ उठाने की तरकीबें मनुष्य न सोचे तो कहना पड़ेगा कि वह इन्सान नहीं, हैवान है । किसी ने कहा है कि यदि मरण नहीं होता तो मनुष्य को तत्वज्ञान की भूख भी नहीं होती। मरण एक ऐसी अद्भुत पहेली है कि उसके कारण जीवन का अर्थ करने के लिए मनुष्य बाध्य होता है। दुनिया के अनेक मनीषियों ने जीवन का चिन्तन करने का और मरण का रहस्य ढूंढ़ने का प्रयत्न किया है। मरण क्या है और मरण के उस पार क्या है, इन सवालों के जवाब ढूंढ़ने वाले हमारे पूर्वजों में एक युवा था, नचिकेता । उसने देव, मानव और दानव तीनों का चिन्तन सुन लिया । इससे उसको सन्तोष नहीं हुआ। तब वह सीधा मरण के घर पर ही गया और तीन दिन की भूख-हड़ताल करके उसने स्वयं मौत से, यमराज से, उसका रहस्य आग्रहपूर्वक, दृढ़तापूर्वक, मांग लिया । यमराज ने प्रसन्न होकर उसे सब समझाया। इसलिए मैंने यह किताब अत्यन्त आदर और नम्रता के साथ उस नचिकेता को ही अर्पण की है। बच्चों को हम कैसे नहाना, कैसे खाना, कैसे सोना, कैसे लिखनापढ़ना, हिसाब करना, कैसे घूमना प्रादि सब विद्याएं सिखाते हैं । लड़केलड़कियों के वयस्क होने पर स्त्री-पुरुष सम्बन्ध क्या है, शादी का अर्थ क्या है, गृहस्थाश्रम कैसा चलाना, यह भी उन्हें सिखाते हैं । दिन-परदिन अनेक विद्याएं बढ़ती जाती हैं और मनुष्य अधिकाधिक सयाना बनता जाता है । केवल एक विषय का ज्ञान हम उसे नहीं कराते हैं, जो अत्यन्त जरूरी है । वह है मृत्यु के बारे में। अगर कोई कभी बीमार पड़ा ही नहीं तो आरोग्य के शास्त्र के बिना उसका काम शायद चल सकता है, लेकिन मरण तो हरएक प्राणी के लिए है ही। मरण किसी का भी टला नहीं है। लोगों को प्राज हम मरण के बारे में क्या सिखाते हैं ? कुछ नहीं । हां, मरण से डरना और मरण से भागना हम जरूर
SR No.032167
Book TitleParam Sakha Mrutyu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaka Kalelkar
PublisherSasta Sahitya Mandal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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