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________________ मररण- दान :: १०१ जिस तरह थके हुए होने के कारण हम रात को नींद की अपेक्षा करते हैं और सारी रात गाढ़ निद्रा पाने पर ताजे, प्रसन्न होकर दूसरा दिन शुरू करते हैं, उसी तरह मृत्यु और पुनर्जन्म के बारे में भी होना चाहिए। सोनेवाला जानता है कि नींद के बाद दूसरे दिन हम जागेंगे ही। सूर्यास्त देखने वाला रसिक अथवा व्यवहारी मनुष्य जानता है कि रात्रि पूरी होने के बाद सूर्योदय होने वाला ही है। केवल किसान ही नहीं, हरएक आदमी जानता है कि गरमी के दिनों में जो घास सूख जाती है वह बारिश होते ही फिर से जरूर उगने वाली है । इसी तरह मनुष्य का विश्वास होता है कि 'ध्रुव जन्म मृतस्य च ।' उसको मृत्यु का दुःख या डर होना ही नहीं चाहिए । कठोपनिषद् में युवा नचिकेता को जीवन-मरण का रहस्य समझाने वाले प्रत्यक्ष यमराज घास का ही उदाहरण लेकर कहते हैं सस्यमिव मर्त्यः पच्यते सस्यमिवाजायते पुनः । हमारे धर्म में पुनर्जन्म की बात सर्वमान्य है । पुनर्जन्म के सिद्धान्त का विरोध शायद किसी भी धर्म में नहीं है। जहां मौन है, वहां उस मौन का अर्थ इनकार नहीं, किन्तु निर्णय ही हो सकता है । हम भारतीय लोग आत्मा-परमात्मा को मानें या न मानें, पुनर्जन्म अथवा जन्म - परम्परा को तो मानते ही हैं । कर्म के सिद्धान्त को समझने के लिए पुनर्जन्म को मानना ही पड़ता है । धर्म की व्यवस्था भी जन्म - परम्परा की कल्पना से ही पूर्णतया संतोष दे सकती है । मृत्यु का चिन्तन मैं हमेशा तरह-तरह से करता रहता हूं । मैंने अपने को आदत ही ऐसी डाली है कि मृत्यु का स्मरण करीब-करीब हमेशा रहता ही है । मैं अनुभव से कह सकता हूं कि मृत्यु का सतत स्मरण होने से ही हर्ष - शोक से परे जो श्रानन्द 1
SR No.032167
Book TitleParam Sakha Mrutyu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaka Kalelkar
PublisherSasta Sahitya Mandal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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