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________________ [23] शक्ति से मिलकर संयोग करेगी तो यह युवक जो प्रेमालाप करेगा वह उस युवती को प्राप्त भी होगा। मैं इसे यथार्थिक स्वप्न कहता हूँ। यह कोरी कल्पना नहीं है । यह अनुभव से जाना व परखा गया है तब ऐसा कहा जा रहा है । मैं इस शक्ति को प्राण इसलिये नहीं कहूँगा क्योंकि प्राण निकल जाने पर श्वास आदि का पलायन हो जाता है। स्वप्न-विज्ञान से भी आगे की बात बताता हूँ कि यही वो शक्ति है जिसे सूक्ष्म-शरीर कहा जाता है। यह सूक्ष्म-शरीर ही है जिसके द्वारा साधक वायुगमन करते हैं, देवलोक की यात्रा करते हैं, देवी-देवताओं से वार्ता करते हैं। इसका परिचय कैसे प्राप्त करते हैं और यह किस प्रकार कार्यरत् होता है ? यह एक गहन विषय है । इसकी चर्चा किसी और पुस्तक में करूँगा। यहाँ पर समझ लें कि यह हमारा सूक्ष्म-शरीर ही है जो कि पूर्व पृष्ठों में मैंने शक्ति के नाम से व्यक्त किया है। सारा का सारा परा विज्ञान का ढाँचा इसी सूक्ष्म शरीर की विशेषता के ऊपर आधारित है। स्वप्न भी पराविज्ञान विषयान्तर्गत है। मेरे अनुभव में यह आया है कि व्यक्ति के सूक्ष्म शरीर का दूसरे सूक्ष्म शरीर से क्रिया करना अति आवश्यक है तभी दो शरीर धारी एक समान स्वप्न देखते हैं और स्वप्न के फल से जाग्रतावस्था में भी वह फिर एक दूसरे को स्वीकार कर लेते हैं। अमुक एक स्त्री पर आसक्त थे परन्तु वह स्त्री उनकी तरफ देखती भी नहीं थी। इस बात से वह चिन्तित थे कि कैसे वार्ता हो? कैसे उपलब्धि हो? स्वप्न के द्वारा उन्होंने उससे प्रेमालाप अनेक बार किया था पर वह एक तरफा प्रेमालाप था जो कि उस स्त्री से तो मिला नहीं रहा था। एक रात्रि उन्होंने सुषुप्तावस्था उससे स्वप में प्रेमालाप किया और उस रात्रि को उस स्त्री ने भी उससे प्रेमालाप किया हालाँकि वह स्त्री उनकी तरफ देखती भी न
SR No.032163
Book TitleSwapna Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogiraj Yashpal
PublisherRandhir Prakashan
Publication Year1993
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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