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________________ कर टकराता है और तन्मात्राको मजा लेता है । इन मात्राओं में फँसकर कभी अनेक मानसिक संघर्षों में वह जडीभूत भी हो जाता है, अतः इसे ठीक सोचा जाय कि इसका मुख्य हेतु क्या है । समुद्र मंथन चाहे हुआ या नहीं परन्तु चित्तमन्थन अवश्य होने योग्य वस्तु है । मनके जडीभूत होनेके चिन्ह पाठशाला के एक विद्यार्थीको सब चक्री कहकर पुकारते हैं तब वह चिड़ता है और अप्रसन्न होता है । वह कुशाग्र बुद्धि होते हुये भी शुद्ध लेख लिखनेसे वंचित है । इसी कारण उसके अशुद्ध लेख पर उसे चक्री कहकर हँसते हैं, और वह चिगता है, साथ ही नैयायिक होनेपर भी उसमें कटुता आ जाती है । मनपर जडीभूत विचार पलास्टरकी तरह पुत जाते हैं, वे विचार जगते समय तो उसे व्याकुल रखते ही हैं पर सोते समय भी अपना विरूप दिखाते हैं और बस वह स्वप्न अवस्था है । यह घटना पाठशाला की है, परन्तु श्रामतौर पर समाज में भी यही बात पाई जाती है । धर्म श्रौर नीति की बातें करने वाले एक अपने मनका निरीक्षण तथा चिन्तन मनन करने वाले लोगों को सामान्य तौर पर समाज में एक दम अपनाया नहीं जाता और उन्हें कुछ रुग्ण मनसा समझा जाता है । इसका कारण यह है कि ऐसे लोग प्रायः अपने बारेमें गलत ख्याल बांधकर अपने में ही मगन रहते हैं; अपने आपको दूसरे लोगों से विरल एवं ऊँचा समझते हैं, और समाज में अपना संयोजन अच्छे प्रकार नहीं कर पाते । ऐसे मनुष्य भूल जाते हैं कि जिसे वे स्वज्ञान समझते हैं, वह असल में अपना ज्ञान नहीं होता, वास्तविक स्वसंवेदन'स्वज्ञान, मनुष्य के व्यक्तित्त्व की उन्नति करने वाला होता है
SR No.032161
Book TitleSwapna Sara Samucchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDurgaprasad Jain
PublisherSutragam Prakashak Samiti
Publication Year1959
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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