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________________ जानाति एवं नाम विपाको भविस्सति खेमं वा भयं वाति; निमित्ते पन उप्पन्ने अञ्येसं कथेति, ततो ते अत्थं कहेन्तीति । (PP. 297-301) मिलिन्दपण्हो "भन्ते नागसेन ! सभी स्त्री-पुरुष स्वप्न देखते हैं, अच्छे भी और बुरे भी, पहलेका देखा हुअा भी और पहलेका नहीं देखा हुआ भी, पहलेका किया हुआ भी और पहलेका नहीं किया हुना भी, शान्ति देने वाला भी और घबड़ा देने वाला भी, दूर का भी और निकट का भी, और भी अनेक प्रकारके हजारों तरहके । ये स्वप्न हैं क्या चीज ? कौन इनको देखा करता है ? महाराज ! स्वप्न चित्तके सामने आनेवाला निमित्त' मात्र है। महाराज ! छ प्रकारके स्वप्न पाते हैं :-(१) वायु भरजाने से स्वप्न आता है. (२) पित्तके प्रकोपसे स्वप्न आता है, (३) कफ बढ़ जानेसे स्वप्न पाता है, (४) देवताओंके प्रभावमें प्राकर कितने स्वप्न पाते हैं, (५) बार-बार किसी कामको करते रहनेसे उसका स्वप्न आता है, (६) भविष्यमें होनेवाली बातोंका भी कभी-कभी स्वप्न पाता है । महाराज ! इन छः में जो अन्तिम भविष्यमें होनेवाली बातोंका स्वप्न पाता है वही सच्चा होता है बाकी दूसरे झूठ । भन्ते नागसेन ! भविष्य में होनेवाली बातोंका भला कैसे स्वप्न आता है ? क्या उसका चित्त बाहर जाकर भविष्यमें होनेवाली घटनाओंकी खबर ले आता है ? या भविष्यमें होने निमित्त-रायसडेविड महोदय इसका अनुवाद 'Suggestion' करते हैं । यह आधुनिक मनोविज्ञानके बिल्कुल ही अनुकूल मालूम होता है ।
SR No.032161
Book TitleSwapna Sara Samucchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDurgaprasad Jain
PublisherSutragam Prakashak Samiti
Publication Year1959
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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