SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६ पूर्वज पूजा और यात्रा करना सब प्रकारकी वृद्धिका सूचक है । हृदयपर कमल उगा देखना गलित कुष्टसे शरीर पात होनेकी खबर देता है । चाँद 'पूणिमाको' और सूरजको निगलना या पी जाना दरिद्री के लिये भी उत्थान या राजपद पानेका सूचक है । [ स्वप्नों का प्रकरण वीतराग सर्वज्ञ भगवान् द्वारा सूत्रों में भी वर्णित है, जैसे भगवती सूत्रके सोलहवें शतकके छठवें उद्देशक में ज्ञातपुत्र- महावीर भगवान् से उनके बड़े शिष्य इन्द्रभूति ( गोतम गणधर ) ने स्वप्न सम्बन्धी चर्चा उठाकर इस प्रकार प्रश्न किये हैं । ] प्रश्न - - भगवन् ! स्वप्न कितने प्रकार से कहे गये हैं ? उत्तर- गोतम ! स्वप्नदर्शन पांच प्रकार के होते हैं, जैसे— यथातथ्य स्वप्नदर्शन १. प्रतान स्वप्नदर्शन २. चिन्तास्वप्नदर्शन ३. तद्विपरीत स्वप्नदर्शन ४. और अव्यक्त स्वप्नदर्शन ५ । स्वप्न क्या हैं ? सुषुप्ति अवस्था में किसी अर्थ के विकल्पका अनुभव करना, स्वप्न कहलाता है, और उसके पांच प्रकार हैं। - १ यथातथ्य – सत्य अथवा तात्विक, उसके दृष्टार्थ-विसंवादी और फलविसंवादी के भेदसे दो प्रकार हैं । स्वप्न में देखे हुए अर्थके अनुसार जाग्रत अवस्था में जो घटना होती है वह दृष्टार्थ विसंवादी है । जैसे किसी आदमीने स्वप्न में देखा कि 'मुझे किसीने हाथ पर फल रखकर अर्पण किया है' और वह जग कर उसीप्रकार देखे । स्वप्न के अनुसार जिसका फल तुरंत मिले वह फल विसंवादी है । जैसे कोई गौ, बैल, हाथी आदि के ऊपर अपनेको स्वप्न में चढ़ा देखता है, और कालान्तर में वह वैसी ही सम्पत्ति को पा जाय ।
SR No.032161
Book TitleSwapna Sara Samucchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDurgaprasad Jain
PublisherSutragam Prakashak Samiti
Publication Year1959
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy