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________________ प्रतएवं वे अंधिक उद्वेगात्मक स्वप्नोंका कारण नहीं बनते, किन्तु जिन स्थायी भावों का प्रकाशन प्रतिकूल परिस्थिति के कारण अथवा चेतन मन के नैतिक प्रतिबंध के कारण नहीं हो पाता, वे बड़े उद्वेगात्मक स्वप्नों के कारण बन जाते हैं। स्वप्न के देश, काल जागरित अवस्था के देश, काल से भिन्न होते हैं। हमारा शरीर एक ही स्थान पर पड़ा रहता है, किन्तु स्वप्नावस्था में हमारा मन संसार भर में विचरण करता रहता है, और वह कितनी ही नई सृष्टियाँ रच लेता है। कभी-कभी एक मिनट में ही हम इतना लम्बा स्वप्न देखते हैं, कि मालूम होता है, जैसे कई वर्ष बीत गये। स्वप्नावस्था का अनुभव मनोराज्य के अनुभव के समान होता है। यदि कोई मनुष्य अपने विस्तर पर लेटकर अपने विचारों का चेतना-द्वारा नियन्त्रण करना बन्द कर दे मोर मन जो कुछ करता है, उसे करने दे तो वह शीघ्र ही अपने-आप को मनोराज्य की सृष्टि करते पायेगा। इस अवस्था के बाद स्वप्नावस्था आती है। जिसका अन्त सुषुप्ति अवस्था में होता है। जब हम किसी गन्दे और बदबूदार कमरे में सोते हैं, अथवा गन्दे कपड़ों को प्रोढ़ कर सोते हैं,तो अप्रिय स्वप्न देखते हैं । मुंह ढंक कर सोने से बुरे स्वप्न पाते हैं। हमारी साँस से निकली दुर्गन्धे फिर हमारे दिमाग में आ जाती है,और बुरे स्वप्नोंको पैदा करती है । सोने के कमरे में यदि बाहर का हल्ला-गुल्ला सुनाई पड़ना एक विशेष प्रकारके स्वप्नोंका कारण बन जाता है। इसी प्रकोर सोने के कमरे में यदि बाहर से आने वाली आवाज कर्णप्रिय अथवा मन्त्र मुग्ध करने वाली हो, तो स्वप्न सुन्दर आते हैं और यदि यह आवाज अरोचक और दुःखदायी हो तो स्वप्न
SR No.032161
Book TitleSwapna Sara Samucchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDurgaprasad Jain
PublisherSutragam Prakashak Samiti
Publication Year1959
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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