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________________ ६२ ७३ " 27 23 ७६ 11 ,, . ७७ رو ८० ८२ 11 " 31 "1 19 ८६ ८७ : x xx x ૪૬ ५० ار ५१ ५२ ५४ ५५ " ५६ ५७. ६४ ६५ ६७ ६८ ६६ ७० ७१ ७४ ७५ ७६ विचितेज्जो किंबहु ध्यानशतक -मणिच्चादिचितणापरमो धम्मज्झाणे जिह व पुव्वं चितावत्थाण चिता ज्झाणंतरं तल्लिंगं संपण्णा संजमरदा XXX मुणेयव्वा संवर- णिज्जरा ज्झाणपवणो वह्या लंबणे हि पवणुग्गदो धुवं अभयासंमोहविवेगविसग्गा वी देहविचित्तं XXX सव्वदो वि सीयायवादिएहि मि सारी रेहि बहुप्पयारेहिं । कमेण तहा जोगजलं ज्झाणजलणेण ॥ पहाणज्भरमंत तह बादरतणुविस जोगविसं ज्झाणमंतबलजुत्तो । अणुभावम्मि णिरुभदि ५७ ६२ ६५ " ३ ४ 1 ६७ ६८ " ६३ १०२ ६६ १०१ * * * १०३ १०४ ७५ ७१ ७२ विचितेज्जा कि बहुणा -मणिच्चा इभावणापरमो धम्मभाणेण जो पुव्वि चित्तावत्थाण चिता भाणंतरं तं लिंगं संपण्णो संजमरो XXX मुणेयव्वो संवर - विणिज्जरा झाण-पवणावहूया लंबणाई पवणसहि दुयं वहाऽसंमोह - विवेग - विउस्सग्गा बीभेइ देहविवित्तं XXX सव्वहा य सीयाऽऽयवाइएहि य सारीरेहि बहुपारे । कमेण जहा तह जोगिमणोजलं जाण ॥ पाणयरमंत तह तिहुयण-तणुविषयं मणोविसंजोग - मंतबलजुत्तो । परमाणुमि णिरु भइ ध्यानशतक व आदिपुराण का ध्यानप्रकरण आचार्य जिनसेन (हवीं शती) द्वारा विरचित महापुराण एक पौराणिक ग्रन्थ है । वह प्रादि श्रेणिक के प्रश्न पर गौतम गणधर ने जो पुराण और उत्तरपुराण इन दो भागों में विभक्त है । राजा उसके लिए ध्यान का व्याख्यान किया था उसकी चर्चा करते हुए श्रादिपुराण के २१वें पर्व में जो विस्तार से ध्यान का निरूपण किया गया है वह ध्यानशतक से काफी प्रभावित दिखता है । इन दोनों की विवेचनपद्धति में बहुत कुछ समानता दृष्टिगोचर होती है। ऐसे कितने ही श्लोक भी उपलब्ध होते हैं जो ध्यानशतक की स्पष्टीकरण आगे यथाप्रसंग किया जाने वाला । यथा इतना ही नहीं, श्रादिपुराण में वहां गाथाओं के छायानुवाद जैसे हैं । इसका ध्यानशतक में मंगल के पश्चात् सर्वप्रथम ध्यान का स्वरूप दिखलाते हुए यह कहा गया है कि जो स्थिर अध्यवसान या एकाग्रता युक्त मन है उसका नाम ध्यान है । इसके विपरीत जो अनवस्थित ( अस्थिर) चित्त है वह भावना, अनुप्रेक्षा और चिन्ता के भेद से तीन प्रकार का है। एक वस्तु में चित्त के अवस्थानरूप वह ध्यान अन्तर्मुहर्त काल तक होता है और वह छद्मस्थों के ही होता है ।
SR No.032155
Book TitleDhyanhatak Tatha Dhyanstava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhadrasuri, Bhaskarnandi, Balchandra Siddhantshastri
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year1976
Total Pages200
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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