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________________ ૬૬ राग रुद्द रोगास यस मण लेश्या लोग वणिय वत्थु वत्थू वयजोग वलय यह यंजण चायण विस्सग्ग विणय विमाण बिरेयणोसह विवेग विसय विसाय विसोसण मेर वस्तु वस्तु संक्रम • विपरिणाम वस्तूनां विपरिणाम वाग्योग बेज्ज वेयणा वह राग रौद्र बोच्छिनकिरिय पडिवाइ सद्दादिविसय सद्धम्मावस्सय रोगाशयशमन लेश्या लोक वणि घ वलय वघ व्यञ्जन वाचना व्युत्सर्ग विनय विमान विरेचनौषध विवेक विषय षाद विशोषण वीर वंच वेदना वेष व्युच्छिशक्रिय प्रप्रति पाति शब्दादि विषय सद्धर्मावश्यक ध्यानशतकम् विषयासक्ति हिंसादिविषयक अतिशय क्रूरतायुक्त रौद्रध्यान रोग की निदानपूर्वक चिकित्सा स्फटिक मणि के समान कृष्णादि द्रव्य की समीपता से होने वाला आत्मपरिणाम १४,२५,६६,८९ ५३ पाच अस्तिकायरूप लोक आय-व्यय का ध्यान रखने वाला वणिक्, व्यापारी जिसमें गुण - पर्याय बसते हैं —रहते हैं वस्तुपरिवर्तन, अर्थसंक्रान्ति चेतन-अचेतन वस्तुओं का विरुद्ध परिणमन, उनकी नश्वरता श्रदारिक, वैक्रियिक और श्राहारक शरीर के व्यापार से आने वाली वचनवर्गणा के श्राश्रयसे होनेवाला जीवका व्यापार धर्मा आदि सात पृथिवियों का परिक्षेपण करने वाला बायुमण्डल ताडन शब्द वाचना - निर्जरा के निमित्त शिष्य के लिए सूत्रार्थं का प्रदान करना देह व उपधि का परित्याग अभ्युत्थानादि ज्योतिषी आदि देवों के निवासस्थान विरेचक ( दस्तावर) प्रौषधि देह से आत्मा को पृथक् समझना जिनमें प्रासक्त होकर प्राणी दुख को प्राप्त होते हैं विषाद, विकलता अनशनादि के द्वारा होने वाला कर्म का शोषण (विनाश ) विशेषरूप से कर्म को नष्ट करने वाला या कल्याण को प्राप्त होने वाला बंच वेदना, पीड़ा का अनुभव कील आदि से नाक आदि का छेदना क्रिया से रहित होकर स्थिरस्वभाव वाला शुक्लध्यान ८, ४६ ५, २४ १०० शब्द आदि इन्द्रियविषय समीचीन चारित्र से अनुगत सामायिकादि ६० ३ ४ ८५ ७६ ५४ १६ ७८,८० ४२ ६०, ६२ ६८ ५४ १०० ६० १०३ १०० १ ७२ 19 १६ ८२ ६ ४२
SR No.032155
Book TitleDhyanhatak Tatha Dhyanstava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhadrasuri, Bhaskarnandi, Balchandra Siddhantshastri
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year1976
Total Pages200
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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