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________________ ( १४ ) न्यास सारसमुद्धार (लघुन्यास) के कर्ता का संक्षिप्त परिचय कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्यजी भगवंत विरचित 'श्री सिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम्' के बृहन्न्यास में से पू. प्राचार्य श्री कनकप्रभसूरीश्वरजी म. सा. का परिचय देना भी अत्यंत अनिवार्य है। प्राचीन इतिहास के ग्रंथों के अवलोकन के बाद भी उनके जीवन सबंधी विशेष जानकारी तो नहीं मिल पाई है, फिर भी न्याससारसमुद्धार के अन्त में प्रशस्ति काव्यों के द्वारा उनकी विद्वत्ता का हमें अवश्य बोध होता है। प्रशस्तिकाव्यप्रासीद् वादिद्विरदपृतनापाटने पञ्चवक्त्रश्चान्द्रे गच्छेऽच्छतरधिषणो धर्मसूरिमुनीन्द्रः । पट्ट तस्यानि जनमनोऽनोकहानन्दकन्दः, सूरि: सम्यग्गुणगणनिधिः ख्यातिभाग् रत्नसिंहः ।। १ ।। यस्योपरागसीमाया-मुदयः परभागभाग् । देवेन्द्रसूरिस्तत्प? जज्ञे नव्यो नभोमणिः ।। २ ।। भूपालमौलिमाणिक्य-मालालालितशासनः । दर्शनषट्कनिस्तन्द्रो, हेमचन्द्रो मुनीश्वरः ।। ३ ।। तेषामुदयचन्द्रोऽस्ति, शिष्य: संख्यावतां वरः । यावज्जीवमभूद्यस्य, व्याख्याज्ञानामृतप्रपा ।। ४ ।। तस्योपदेशाद् देवेन्द्रसूरिशिष्यलवो व्यधात् । न्याससारसमुद्धारं, मनीषी कनकप्रभः ।। ५ ।। अर्थ- चान्द्रगच्छ में वादी रूपी हाथियों की सेनाओं को फाड़ने में सिंह समान अत्यंत बुद्धि निधान प्राचार्य धर्मसूरि थे। जन-मन रूपी वृक्ष के पानंद रूपी कंद वाले सम्यग् गुण गण के महासागर और अत्यंत प्रसिद्ध रत्नसिंहसूरि उनके पट्टधर थे। उपराग अर्थात् विपक्षाक्रमण की पराकाष्ठा में जिनका उदय गुणोत्कर्ष को भज रहा था, ऐसे नवीन सूर्य समान देवेन्द्रसूरिजी म. उनके पट्ट पर उत्पन्न हुए। नवीनता का कारण यह है कि राहु ग्रहण की पराकाष्ठा में सूर्य तेजस्विताहीन उदित होता है, जबकि देवेन्द्रसूरिजी म. परवादियों के आक्रमण में अधिक दीप्तिमान हो रहे थे। माणेक की श्रेणी से सुशोभित मुकुट वाले राजा भी जिनकी आज्ञा का स्वीकार करते थे, ऐसे षड्दर्शन के ज्ञाता श्री हेमचन्द्रसूरिजी हुए। उनके अनेक शिष्यों में उदयचन्द्र नाम के शिष्य हैं, जो सदैव जीवन-पर्यन्त व्याख्या ज्ञान रूपी अमृत की प्रपा (प्याऊ) थे।
SR No.032130
Book TitleSiddha Hemchandra Shabdanushasan Bruhad Vrutti Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajrasenvijay
PublisherBherulal Kanaiyalal Religious Trust
Publication Year1986
Total Pages560
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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