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________________ 5७ अर्थ :- अशिक्षित के आलाप तुल्य कहाँ मेरी स्तुतियाँ और कहाँ आचार्य सिद्धसेन की अर्थ गंभीर स्तुतियाँ ? एक बार कुमारपाल के साथ हेमचन्द्राचार्यजी शत्रुजय तीर्थ पर दादा के दर्शन के लिए गए और प्रभु के दर्शन के साथ ही उन्होंने महाकवि धनपाल विरचित 'ऋषभ पंचाशिका' द्वारा प्रभु की स्तुति की । बाद में कुमारपाल ने पूछा,' प्रभु ! आप तो स्वयं कवि हो फिर अपनी स्तुतियाँ क्यों नहीं बोले १ नम्रतामूर्ति आचार्यश्री ने कहा. महाकवि धनपाल की ये स्तुतियाँ सद्भक्तिगर्भित है । ऐसी स्तुतियों की रचना की ताकत मुझ में कहाँ है ? स्वर्गगमन .. श्रीमद् हेमचन्द्राचार्यजी एक महान् योगीपुरुष थे, साहित्यकार थे ... साक्षात् सरस्वती पुत्र थे... महाकवि थे... जिनशासन के बेजोड प्रभावक थे.... और सचमुच ही वे 'कलिकाल सर्वज्ञ' थे। आचार्यश्री के विद्यमान ग्रन्थों का अवलोकन कर पाश्चात्य विद्वान् आचार्यश्री को Ocecn of Knowledge 'ज्ञान के महासागर' कहते है । सिद्धराज और कुमारपाल जैसे नृपतियों को प्रतिबोध कर.... लाखों नर-नारियों को जिनशासन का रसिक बनाकर.. 84 वर्ष के दीर्घायुष्य को पूर्णकर सिद्धस्वरूप के ध्यान में मग्न बनकर आचार्यश्री ने संवत् 1229 में अपने देह का त्याग कर दिया । ___ आचार्यश्री के स्वर्गगमन से कुमारपाल और प्रजाजनों को अत्यन्त ही आघात लगा । कुमारपाल के लिए तो यह विरहवेदना असह्य थी । आचार्यश्री के स्वर्गगमन के छह मास वाद कुमारपाल ने भी समाधिपूर्वक अपना देह छोड दिया ।
SR No.032128
Book TitleSiddha Hemchandra Shabdanushasan Bruhad Vrutti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajrasenvijay
PublisherBherulal Kanaiyalal Religious Trust
Publication Year1986
Total Pages650
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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