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________________ पर रखकर उसका भव्य जुलुस निकाला और तीन सौ प्रतिलिपीकार को बिठाकर उसकी अनेक प्रतियाँ तैयार करबाई और दूर-सुदूर देशों में उसका प्रचार किया गया । पाटण में सर्वप्रथम विद्वद्वय 'काकल कायस्थ ने सिद्धहैम व्याकरण का अध्यापन प्रारम्भ किया । हेमचन्द्राचार्य जी ने व्याकरण के प्रत्येक सूत्रों का प्रयोग सिद्ध करने के लिए व्याश्रय महाकाव्य की भी रचना की । संस्कृत व्याकरण के समस्त सूत्रों को काव्य रूप में ग्रन्थितकर के कलिकाल सर्वज्ञ आचार्यश्री ने अपने अद्भुत व्यकित्व का परिचय दिया। । याश्रय महाकाव्य में एक ओर सिद्ध हैम के सूत्रों के प्रयोग दिखलाए हैं तो दूसरी ओर मुलराज सोलंकी मे लेकर कुमारपाल महाराजा पर्यंत सोलंकी वंश की कीर्तिगाथा का बहुत ही सुन्दर वर्णन प्रस्तुत किया है। संस्कृत द्वयाश्रय बीस सर्गों में विभक्त हैं और प्राकृत द्वयाश्रय आठ सर्गों में विभक्त है । प्राकृत द्याश्रय में कुमारपाल के नित्य जीवन का परिचय दिया है। एक शब्द के अनेक अर्थ होते हैं और एक ही अर्थ के अनेक शब्द होते हैं, इस हेतु हेमचन्द्राचार्य जी । ने अभिधान-चिन्तामणी और अनेकार्थ संग्रह नामक दो शब्दकोषों की भी रचना की है। बुद्धि-प्रतिभा एक बार कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य देब श्री पाटण में नेमिनाथ चरित्र के ऊपर प्रवचन कर रहे थे । सभी दर्शन के लोग आचार्य देवश्री की देशना का उत्साह से श्रवण करते थे। इस चरित्र के अन्दर जब पांडवों द्वारा जैन दीक्षा ग्रहण की बात आई तव कुछ ब्राह्मणी ने आपत्ति उठाई और उन्होंने सिद्वराज के पास जाकर शिकायत की कि ये जैनाचाय: वेदव्यास के कथन से विपरीत वात करते...इससे 'स्मृति' का अनादर होता है। जब सिद्धराज ने आचार्य श्री से इस संदर्भ में प्रश्न किया तब आचार्यश्री ने कहा, हे राजन् ! व्यासजी अपनी महाभारत में पांडवों के हिमालय गमन की बात करते हैं और जैन ग्रन्थों में पांडवों के दीक्षा ग्रहण की बात आती हैं, परन्तु वे पांडव और ये पांडव एक ही हैं, ऐसी कोई बात शास्त्र में नहीं आती हैं । पांडव तो बहुत हुए हैं । सुनो ! गांगेय पितामह ने अपने परिवार को कहा था, 'मेरी मृत्यु के बाद मेरे शरीर का अग्निदाह उस भूमि में करना जहाँ किसी का अग्निदाह न हुआ हो !' भीष्म पितामह की मृत्यु के बाद उनके देह को उनके परिवारजन एक पर्वत के ऊपर ले गए तब वहाँ देववाणी हुइ -- 'अत्र भीष्मशतं दग्ध, पाण्डवानां शतत्रयम् । द्रोणाचार्य सहस्र तु कर्णसंख्या न विद्यते ॥ यहाँ सो भीष्म, तीन सो पांडव एक हजार द्रोणाचार्य और अगणित कर्णो का अग्निदाह हुआ है।' इससे स्पष्ट हैं कि पांडव अनेक हुए हैं। प्रवचन में जिन पांडवों की बात चल रही हैं ...वे जैन पांडव थे और उन्होंने जैन दीक्षा अङ्गीकार की, इसमें शंका का स्थान ही कहाँ हैं? ..
SR No.032128
Book TitleSiddha Hemchandra Shabdanushasan Bruhad Vrutti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajrasenvijay
PublisherBherulal Kanaiyalal Religious Trust
Publication Year1986
Total Pages650
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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