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________________ स्त्री-धन तेरहवां प्रकरण हिन्दूला में 'स्त्रीधन' का प्रकरण भी कुछ कठिन है । स्त्रीधन का वारिस कौन है ? इस वातके जाननेके लिये पहिले यह निश्चित करना होगा कि वह धन स्त्री को कब और किस समय मिला था, तथा स्कूल के प्रकरणमें कहे हुए स्कूलों में मान्य ग्रन्थोंकी उस धनके बारेमें क्या राय है, स्त्री संतान वाली है या संतान रहित, संतान रहित स्त्री के स्त्रीधनकी वरासत और भी मुशकिल है । जब तक पिछले प्रकरणों का ज्ञान प्राप्त न हो तब तक स्त्रीधन ठीक समझमें नहीं आ सकेगा, इसलिये पाठकों को चाहिये पिछले प्रकरण और स्कूलोंमें मान्य ग्रन्थोंके मत भेद को भली भांति जान लें फिर उन्हें स्त्रीधन के समझने में दिक्कत न होगी । यह प्रकरण दो भागोंमें विभक्त किया गया है । (१) स्त्रीधन, दफा ६५२ से दफा ७६१ तक और (२) स्त्रीधन की वरासत दफा ७६२ से दफा ७७३ तक । (१) स्त्री-धन दफा ७५२ स्त्री धन शब्दका अर्थ 'स्त्रीधन' शब्दकी उत्पत्ति मिताक्षरामें यों है:'स्त्री धन शब्दश्व योगिको न पारिभाषिक: योगसम्बन्धे परिभाषाया अयुक्तत्वात्' । स्त्रीधन शब्द योगिक है। 'स्त्री' और 'धन' इन दो शब्दोंके योगसे स्त्रीधन शब्दकी उत्पत्ति है। शब्द कल्पद्रुम के पेज ४४० में स्त्रीधन शब्दका अर्थ स्पष्ट किया गया है । 'स्त्रीधन' नपुंसकलिङ्ग है। देखो शब्द कल्पद्रुम 'स्त्रिया-धनम्, स्त्रीधनम् स्त्रीस्वत्वास्पदभूतधनम्' षष्ठीतत्पुरुष समास करनेसे 'स्त्रीधन' शब्दका अर्थ होगा स्त्रीका धन । जिस धनमें स्त्रीका पूरा अधिकार हो वह स्त्रीधन है यही अर्थ मिताक्षरा भी मानता है।
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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