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________________ दफा ७४३] खर्च पानेका अधिकार आदि (२) भरणपोषणके खर्च देनेका जो इकरार कानून इन्तकाल जायदाद एक्ट नं०४ सन् १८८२ ई० की दफा ५८-५६ में कही हुई रेहनकी शौके अनुसार किया गया हो उसका खरीदार पाबन्द होगा। अगर पैसे इकरारके बाद भरणपोषण पाने वालेका कब्ज़ा जायदादपर होगया हो, पीछे वह बेंच दी गयी हो तो भी खरीदार पाबन्द होगा। खरीदार अन्य प्रकारके इकरार नामों का पाबन्द हो सकता है अगर खरीदनेसे पहिले उसे उन इकरारों की बात मालूम रही हो। (३) जब कि भरणपोषणका खर्च न तो किसी अदालती डिकरीसे और न किसी ऐसे इकरारनामेसे जो रेहनके समान असर रखता हो जायदाद पर डाला गया हो तो उस जायदादका खरीदार सिर्फ उस सूरत में पाबन्द होगा जब कि जायदादका इन्तकाल किसीके भरणपोषणके हलके मारनेकी नीयतसे कियागया हो और खरीदारको उस नीयतकी खबर हो, देखो--कानून इन्तकालकी दफा ३६ और देखो-2 Boun. 494; 10 C. W. N. 1074. (४) परन्तु जब ऐसी नीयतसे इन्तकाल न किया गया हो, या अगर ऐसी नीयतसे किया भी गयाहो, मगर खरीदारको उस नीयतकी खबर न हो, या जायदादपर खर्चा डाला ही न गया हो तो ऐसी सूरतमें खरीदार भरणपोषणके खर्च देनेका ज़िम्मेदार नहीं है। ऐसे खरीदारकी नेक नीयतीका भी विचार अवश्य किया जायगा, उस जायदादपर किसीका भरणपोषणका दावा है या नहीं और उसकी सूचना खरीदारको मिली हो या न मिली हो दोनों सूरतोंमें इस तरहकी जायदादका खरीदार भरणपोषणाके खर्चका जिम्मेदार नहीं होगा, देखो--2 Bom. 494, 22 All. 326; 24 All. 160; 4 All. 2963 11 Cal. 1023 2 Mad. 126; 27 Cal. 55157C. W. N. 764. पहिलेके कई मुकदमों में यह मानागया है कि अगर नेकनीयत रखनेवाले खरीदारको उस जायदादपर किसीके भरणपोषणका दावा रहनेकी खबर न हो तो वह बेशक उसका पाबन्द नहीं होगा, लेकिन साथही यह भी माना गया है कि अगर खरीदारको भरणपोषणके दावा होनेकी खबर हो या कमसे कम उसे यह मालूम हो कि ऐसा दावा होना सम्भव है और यहभी मालूम हो कि जो जायदाद मैं खरीद रहा हूं उसके मेरे हाथमें आजानेसे उस दावा पर बुरा असर पड़ेगा तो वह पाबन्द है, देखो-भगवतीदासी बनाम कनीलाल मित्र 8 B. L. R. 225, 17 W. R. C. R. 433; 18 Bom. 679; 12 Bom. H. C.69; 26 W. R.C. R 100; 2 Agra 42; 12 Mad. 260-272; 12 Mad. 384, 12 Bom. L. R. 1075; 2 Bom. 494-517. या वह यह जानता हो कि मेरी खरीदी हुई जायदादकी सहायता बिना यह दावा पूरा नहीं किया जासकता तो खरीदार उस दावेका पाबन्द हो जायगा, देखो-12 Mad. 260-269.
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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