SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 934
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दफा ६१८-७०.] स्त्रियोंकी वरासतकी जायदाद जब किसी विधवा का हल बेच दिया गया हो तो उसका मूल्य उसके वारिसों को दिया जायगा, देखो--28 Cal. 155, b C. W. N. 242. हिन्दू विधवाके विरुद्ध डिकरी-हिन्दू विधवाके जमानती महाजनको, जव कि जमानत डिकरी की पूर्तिके लिये काफ़ी न हो, यह अधिकार होगा, कि वह दूसरी जायदादको कुर्क कराये। जगन्नाथप्रसाद बनाम जदुराय L.R. 6 A. 873 85 I. C. 9633 A. I. R. 1925 Al. 352. जब किसी विधवाकी स्थावर जायदादके खिलाफ़ डिकरीके नीलाम की कोई जायदाद खरीदी जाती है, तो खरीदारका अधिकार, उस नालिशकी हैसियत पर निर्भर होता है जिसकी बिना पर वह डिकरी प्राप्त की गई है। यदि दावा उसके व्यक्तिगत खिलाफ हो, तो उसका ताहयात अधिकार ही मुन्तकिल होता है। ईश्वरीप्रसाद बनाम बाबू नन्दन शुक्ल 47 All. b63L. R.6 A. 291; 88 I. C. 1937 A. I. R. 1925 All. 495. दफा ७०० विधवा आदि कब जायदादका इन्तकाल करसकतीहै? कानूनी ज़रूरतों के लिये ( देखो दफा ६०२-७०६ ) जो ऐसे कारणों से अनायास आपड़ी हों जिनपर कुछ वश नहीं चल सकता था ऐसी सूरतमें कोई विधवा या सीमावद्ध दूसरी स्त्री मालिक जायदादका इन्तकाल करसकती है और उस जायदाद पर उस ज़रूरतके खर्चका बोझ डाल सकती है रिवर्जनर उसके पाबन्द होंगे । कलक्टर श्राफ मसूरिपाटम बनाम कवेली वेंकट नानपणा 8M. IA.5292W. R. P. C. 61: 10 B. L. R.1.5 Rom. H. C A.C. 2173 हफीजन्निशा बेगम बनाम राधाविनोट मिश्र Ben. S. D. A. (1866) P. 595; इस केसमें हमेशा का पट्टा था 14.Ch W.N. 895. लेकिन अगर जायदादकी आमदनी उक्त ज़रूरत के पूरी करने के लिये काफी हो तो रिवर्ज़नर वारिस पाबन्द नहीं होंगे, देखो-रवनेश्वरप्रसादसिंह बनाम चण्डीप्रसादसिंह ( 1911) 38 Cal. 7215 काली नरायनराय बनाम रामकुमारचन्द्र W. R. 1864 C. R. 14; विधवा या कोई दूसरी स्त्री मालिक बसीयतनामाके द्वारा जायदादका इन्तकाल नहीं करसकती-विश्वनाथ बनाम नरायन (1903) 6 Bom. LR. 314. संसारिक दूसरे कामोंकी अपेक्षा कृत, धार्मिक, या दान सम्बन्धी या अपने पतिकी आत्मा को शांति पहुंचाने के मतलबोंके लिये जायदादके खर्च करनेका अधिक अधिकार विधवाको प्राप्त है। ___ खाने पीने के लिये-किसी विधवा ने, अपने पति की जायदाद की आमदनीसे, जो केवल एक मकान था, अपनी परवरिश में असमर्थ हो, उसे ६००) में बेच दिया। उस रकम में से ३००) रुपये उसने उस कर्ज की अदाई, जिसकी पाबन्दी भावी वारिसों पर थी, लगाया और शेष ३००). उसने अपनी
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy