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________________ दफा ६६५-६६७] स्त्रियों की वरासतकी जायदाद दफा ६९५ भरण पोषणके खचसे बची हुई रक्कम भरण पोषणके खर्चसे कुछ रकम बचाकर यदि विधवा किसी काममें लगावे तो वह उसकी स्त्रीधनकी जायदाद है और उसके मरनेके बाद उसके वारिसको मिलेगी, देखो-28 Mad. 1. दफा ६९६ विधवाकी खरीदी जायदाद यह ख्याल कर लेनेका कोई कारण नहीं है कि अपने पतिके मृत्यु के बाद हिन्दू विधवाने जो जायदाद खरीदी हो वह ज़रूरही उसके पतिकी जायदादका भाग मानी जाय-26 I. A. 2263 26 Cal. 871. . दफा ६९७ पट्टे विधवा या दूसरी स्त्री सीमाबद्ध मालिक बरासतसे पायी हुई जायदाद का पट्टा दे सकती है और इसी तरह जायदादके प्रबंध सम्बन्धी दूसरे काम भी कर सकती है मगर यह माना गया है कि यदि ऐसी किसी स्त्रीने श्रप अधिकारसे अधिक पट्टे सदाके लिये दिये हों या लम्बी मुहतके लिये दिये हो तो वह सब उसके मरने पर रह हो जावेंगे और रिवर्जनर वारिस उन्हें रह करा सकता है । देखो-सदाई नायक बनाम सेराईनायक ( 1961 ) 28 Cal. 532;5 C. W.N. 2703 विजयगोपाल मुकरजी बनाम नीलरतनमुकरजी (1903) 30 Cal. 9903; 7 C. W.N. 864,S.C. on appeal बिजयगोपाल मुकरजी बनाम कृष्णमहिषी देवी श्रीमती ( 1907)34 I. A. 87, 34 Cal. 8293 11 C. W. N. 42438 Bom L. R. 602. .... परन्तु वह पट्टे वैसी हालतोमें दिये गये हों कि जिन हालतों में उस स्त्री मालिकका किया हुआ जायदादका इन्तकाल जायज़ समझा जा सकता है तो रिवज़नर वारिस उसे रह नहीं करा सकता । या किसी खास मामलेमें जब कि वह पट्टे जायदादके अच्छे इन्तज़ामके खयालसे मुनासिब समझे जा सकते हो या जायदादके लाभके लिये समझे जासकते हों तो रिवर्जनर वारिस उन्हें रद्द नहीं करा सकता । देखो-शङ्करनाथ मुकरजी बनाम बिजयगोपाल मुकरजी (1908).13 0.WN. 2013 दयामनी देवी बनाम श्रीनिवासकुंडू 11906) 33 Cal. 284. - यह माना गया है कि पढे चाहे भी किसी तरहके हों उस स्त्री मालिक की जिन्दगी भर तक चलेंगे जिसने पट्टे दिये हों देखो-मोहनकुंवर बनाम जोरामनसिंह Marsh 166 ( माशेल्स रिपोर्ट हाईकोर्ट आफ बंगाल १८६२), 9. W. R. C. R. 598. ऐसे पट्टोंके रद करनेका दावा सीमाबद्ध स्त्री मालिक के मरनेसे बारह १२ वर्षके अन्दर किया जा सकता है। देखो-34 I.A. 87; 34 Cal 329; 11C. W. N. 42479 Bom.L. R. 602..
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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