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________________ दफा १७६ ] रिवर्जनरके अधिकार वह सबका सब या कुछ उसी ज़रूरतके लिये लिया गया था--24 All. 547; 9 W. R. C. R. 501; 6 M. I. A. 393. १३ ऐसे इन्तक़ालके झगड़े में प्रत्येक खरीदार या रेहन रखने वालेको यह साबित करना होगा कि स्त्रीने अपने अधिकारों तथा मामलेकी सब हालतों और उस इन्तक़ालका जो परिणाम होगा उसको भी मती भांति समझकर इन्तक़ालका दस्तावेज़ लिखा था और जिस क़ानूनी ज़रूरतसे उसने इन्तकाल किया था वह ज़रूरत कहां तक थी इसका मालूम करलेना भी उसे साबित करना पड़ेगा, देखो -- कामेश्वरप्रसाद बनाम रणबहादुरसिंह 8 I. A. 83 6 Cal. 843; 19 I. A. 1; 19 Cal. 249; 5 Bom. 450; 35 Cal. 420. भावी वारिसों ने एक जायदादके क़ब्ज़े के लिये, जो मुतवक्री विधवा द्वारा इन्तक़ाल की गई थी । इन्तक़ालके ५० वर्षके पश्चात् नालिश किया। उस इन्तक़ालकी तस्दीक़ अन्तिम पुरुष अधिकारी की भगिनी द्वारा कीगई ft और मुन्तलिअलैह द्वारा किये हुये, इन्तक़ालकी तस्दीक़ उसके भावी वारिसों में से दो के द्वारा की गई थी और इसके अतिरिक्त भावी वारिसों वे बटवारेमें परस्पर यह मुआहिदा किया था कि वे इन्तक़ाल पर एतराज़ न करेंगे। तय हुआ कि नीचे की अदालतका यह फैसला कि इन्तक़ाल क़ानूनी आवश्यकताके लिये किया गया था बहाल रहना चाहिये, नाटेश अय्यर बनाम पञ्चयागेश अय्यर 22 L. W. 874, 93 I. C. 684. A. I. R. 1926 Mad. 247. नोट - इस विषय में और देखो इस किताब की दफा ४३१ तथा कानूनी ज़रूरतों के बारेमें देखा दफा ४३०, ६०२. (२) परदानशीन औरत - खरीदार या रेहन रखने वालेको क़ानूनी ज़रूरत के सवालके सिवाय, यह स्पष्ट है कि परदानशीन स्त्री किसी इन्तक़ाल. से भी उस वक्त तक पाबन्द नहीं समझी जायगी जबतक कि साफ साफ यह साबित न किया जाय कि वह स्त्री तमाम हालतोंसे पूरी तरहसे वाक़िफ थी और यह कि उसकी परदानशीनी की हालतका अनुचित लाभ नहीं लिया गया था, और यह कि उसके सलाहकारोंपर दबाव या किसी तरहका असर नहीं डाला गया वे स्वतन्त्र थे - 8 I. A. 39; 7 Cal. 245; 29 I. A. 132; 29 Cal. 664; 35 Cal. 420; 31 Bom. 165; 17 All. 125; 37 Cal. 526; 14 C. W. N. 974. यह साबित करने का बोझ खरीदारपर है कि हिन्दू विधवाले किसी जायदादको ऐसी खास हालतोंमें बेंचा जब कि विधवा बिना मंजूरी पतिके वारिसोंके क़ानूनी ज़रूरत के लिये बेच सकती थी - 4 Bom 462. 105
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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