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________________ रिवर्जनरोके अधिकार दफा ६६६-६६८ ] ज़ैनर क़ानून मियादके अनुसार उस समय कर सकता है कि जब उसे हन जायदाद मिलने का पैदा होगया हो और कोई उसके हक़में दखलदे | अगर किसी विधवा ने नाजायज़ दत्तक लिया हो जिससे रिवर्ज़नर का हक़ मारा आताहो, तो विर्ज़नर विधवाकी जिन्दगीमें उसे मंसूख करा सकता है । दफा ६६७ रिवर्ज़नरके दावा करनेकी मियाद ८१६ कोई हिन्दू स्त्री जो किसी जायदादका इन्तक़ाल करे उस इन्तक़ालकी मंसूखीका दावा रिवर्ज़नर बारह वर्षके अन्दर कर सकता है और यह मियाद इन्तक़ाल की तारीख से शुरू होगी, देखो - लिमीटेशन एक्ट 9 of 1908 Sched. 1 art. 125. मगर हिन्दू सीमावद्ध स्त्रीके मरने के बाद जायदाद पर क़ब्ज़ा दिला पानेके दावेका उक्त बारह वर्षकी मियादसे कुछ सम्बन्ध नहीं है, अर्थात् विर्ज़नर उस स्त्रीके मरनेके बाद जायदाद पर क़ब्ज़ा दिला पानेका दावा, मरने की तारीख से बारह वर्ष के अन्दर कर सकता है 12 C. W. N. 857, मिसरवा बनाम गिरिजानन्दन तिवारी । पहिले रिवर्जनरके पश्चात् वाले विरज़नरों को क़ानून मियाद पाबन्द नहीं करता, मगर जब वह पहिले दर्जे के रिवर्जनर होजायेंगे, तो उसवक्तंसे ६वर्ष के अन्दर उन्हें दावा करना चाहिये । उदाहरण - 'अज' अपनी एक विधवा, अपने भाई शिव और भतीजे विष्णु को छोड़कर मरगया । 'अज' के मरने के समय लड़की, लड़की का लड़का, और पिता जीवित न थे । पतिकी जायदाद विधवाको मिली उसने बिना क़ानूनी जरूरतके पतिकी जायदादका एक हिस्सा कुवेरके हाथ १ जनवरी सन् १८८० ई० में बेच डाला । शिव इस इन्तक़ालको बारह वर्ष के अन्दर रद करा पाने का दावा कर सकता है। मगर उसने दावा न किया और कुल मियाद बीत गयी और उसके बाद वह १ जनवरी सन् १६०० ई० को मर गया। इस वक्त जायदाद बिधवा के पास थी । श्रव विष्णु जो अपने बाप शिव के समयमें दूसरा रिवर्जनर था, यानी शिवके बाद जायदाद पाने का हक़ रखता था, शिवके मरनेसे पहिला रिवर्जनर हो गया इस लिये अब वह ता० १ जनवरी सन् १६०० ई० से ६ वर्षके अन्दर विधवाके किये हुये इन्तक़ालकों रंद करा पानेका दावा दायर कर सकता है । शिवकी जिन्दगीमें विष्णु को कानून मियाद पाबन्द नहीं करता था । माता, दफा ६६८ रिवर्ज़नरके दावा करनेका अधिकार रिवर्जनर किसी सीमावद्ध स्त्री या किसी दुसरेके किये हुये इन्तक़ाल की मंसूखीका दावा उस स्त्रीकी जिन्दगी में ही करनेके लिये मजबूर नहीं है ( मगर कर सकता है ) । जब वह जायदादका हक़दार होजाय तब क़ब्ज़ा पानेका दावा करना ज़रूरी है, देखो - जोगेन्द्रनाथ बनरजी बनाम राजेन्द्रनाथ हलदार 7 W. R. C. R. 357.
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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