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________________ ईफा ६६५ ] रिवर्जनरोके अधिकार दावा कर सकती है कि इन्तक़ाल नाजायज़ है। यदि वह न करे तो व्याही लड़की अमीर कर सकती है। यदि वह भी न करे, तो भाई कर सकता है। मगर किसी लड़की के लड़का पैदा हो जानेकी सूरतमें वही लड़का नज़दीकी वारिस हो जायगा और उसे जायदाद मिल जायगी । दफा ६६५ जायदादको बरबादीसे रोकनेका दावा यद्यपि जायदाद में रिवर्जनरका केवल इतनाही स्वार्थ होता है कि वह उस जायदाद के मिलनेकी आशा रखता है; फिर भी उसको यह अधिकार है कि, जायदादको बरबाद होने और नुक़सान पहुंचने से बचानेके लिये विधवा या दूसरी सीमावद्ध मालिकके या उनके स्थानापन्नोंके रोके जाने का दावा करे और वह अदालत से यह भी क़रार दिला सकता है कि जो इन्तक़ाल किया गया है या जिस अनधिकार कामसे जायदादको या रिवर्जनरको नुक़सान पहुंचा हो या पहुंचने का अन्देशा हो, वह इन्तकाल या काम नाजायज़ है, देखो - एसाइनीके रोके जानेके विषयमें 3 Mad. H. C. 116-119. जायदाद के नुकसान के विषय में 2 1. A. 169-191; 15 B. L. R. 83 - 119;23 W. R. C. R. 314; 29 All. 239; 13 C. L. R. 418; 10 B. L. R. 1; 34 Cal 853; 22 Cal. 354; 5 All. 532; 8 All. 646. ६१७ यह ध्यान रहे कि जब विधवाने या किसी सीमावद्ध स्त्रीने जायदादका ऐसा इन्तक़ाल किया हो जो उसके रिवर्जनर्गेको पाबन्द करता हो, तो उस इन्तक़ालको रिवर्जनर उस स्त्रीके जीवनकालमें मंसूख नहीं करा सकता, क्योंकि वह स्त्रीकी जिन्दगी भर जायज़ माना जायगा, पीछे नहीं; अर्थात् मंसूत्र तो हो जायगा, मगर वह मंसूखी स्त्रीके मरनेके बाद समझी जायगी, देखो - -- 10 Cal 1003. जब जायदाद में कोई नुक़सान पहुंच रहा हो और वह स्त्री जो क़ाबिज़ है नुक़सानके रोकने का कोई काम न करती हो, तो रिवर्जनर नुकसान रोके जाने का दावा कर सकता है। ऐसे दावेके लिये यह ज़रूरी है कि रिवर्जनरों के नुक़सान पहुंचने का पूरा अन्देशा हो । जब विधवाने जायदाद में केवल अपने स्वार्थका इन्तक़ाल किया हो, तो उसमें रिवर्जनर हस्तक्षेप नहीं कर सकता; स्वार्थ विधवाकी ज़िन्दगी तक रहेगा। लेकिन अगर रिवर्जनरोंको उससे नुक़सान पहुंचता हो, तो दावा करके बन्द करा सकते हैं। रिवर्जनरको जो दावा करनेका अधिकार दिया गया है वह इस सबब से नहीं कि उसका आशा मात्र स्वार्थ है, बक्लि इस ख्याल से दिया गया है कि इन्तक़ाल मंसूरन करानेमें जो शहादत दरकार है वह देर होने के सबसे कहीं नष्ट न हो जाय; क्योंकि जब इन्तक़ाल हालही में किया 103
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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