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________________ रिवर्जन के अधिकार दफा ६६४ ] किसी सीमाबद्ध स्त्रीके जायदादके वारिस होनेका अधिकार रिवर्जनरों के आपस में कोई निजकी चीज़ नहीं मानी जायगी; अर्थात् उनमें से हर एक, एक दूसरे से स्वतन्त्र ऐसा अधिकार रखता है । इस लिये यदि कोई सीमावद्ध स्त्री जायदादका इन्तक़ाल करे और उस इन्तक़ालको कोई एक रिवर्जनर मानले तो अकेला वही रिवर्जनर उसका पावन्द होगा: दूसरे रिवर्जनर कदापि नहीं होंगे; चाहे वे उस रिवर्जनरके वारिस ही क्यों न हों, अर्थात् ऐसे मामले में बापकी मानी हुई बातका पाचन्द उसका पुत्र नहीं होगा, देखो - बहादुरसिंह बनाम मनोहरसिंह ( 1901 ) 29 I. A. 1; 24 All. 94;6 C. W. N. 169; 4 Bom. L. R. 233; 28 Mod. 57. ८१५ प्रतिनिधित्त्व - हिन्दूलॉ के अन्तर्गत आने वाले मामलोंमें प्रतिनिधित्व का सिद्धान्त लागू नहीं होता, मु० लोराण्डी बनाम मु' निद्दाल 6 Lah. 124; 26 Punj. L. R. 759; A. I. R. 1995; Lah. 403. विधवा और भावी वारिसों के मध्य एक ऐसे समझौताका होना जिसके द्वारा विधवा अपने पति के संयुक्त पारिवारिक जायदाद के हिस्से का स्वतन्त्र उपभोग कर सके जायज़ है । इस प्रकारके समझौतेकी बिना पर विधवा के नाम के दाखिल होनेसे खान्दानके भावी उत्तराधिकारमें कोई अन्तर नहीं आता। सुमित्राबाई बनाम हिरबाजी A. I. R. 1927; Nag 25. दफा ६६४ सीमावद्ध स्त्रीके इन्तक़ालकी मंसूखीका दावा यदि सीमाबद्ध स्त्री मालिक अपने अधिकारसे जायदादका इन्तक़ाल कर दे तो रिवर्जनर उस इन्तक़ालको नाजायज़ क़रार दिला सकते हैं, परन्तु घद्द इन्तक़ाल स्वयं नाजायज़ नहीं है, देखो - विजयगोपाल मुकरजी बनाम कृष्ण महिषी देवी 34IA 87; 34 Cal. 329; 11 C. W.N. 424; 9 Bom. L. R. 602; 41 C. W. N. 106. ऐसे इन्तक़ालको विर्जनर चाहे मामले और चाहे न माने, मगर वह इन्तक़ालके खारिज करदिये जानेका दावा नहीं कर सकता, अर्थात् उसे चाहिये कि पहिले इन्तक़ालको नाजायज़ साबितकरे, पीछे अदालत उसे रद कर देगी । मतलब यह है कि इन्तक़ाल नाजायज़ साबित करके खारिज करा सकता है, देखो - 25 Cal. 1; 1. C. W. N. 443; 30 Cal. 990; 34 Cal. 329; 11 C. W. N. 434, 33 Cal. 257. विधवा द्वारा किये हुये इन्तक़ालका विरोध बादमें पैदा हुआ वारिसकर सकता है A. I. R. 1925 Lah. 108. पति द्वारा किया हुआ कोई गत इन्तक़ाल विधवाकी स्वीकृति के कारण विधवा द्वारा किया हुआ नहीं हो सकता । इलागन बनाम नानजप्पन 85 I. C. 964; A. I. R. 1925 Mad. 919.
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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